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________________ समवाश्रो २५० ७०. पत्तच्छेज्जं कडगच्छेज्जं पत्रच्छेद्यं कटकच्छेद्यं पत्रकच्खेद्यं पत्तगच्छेज्जं ७१. सज्जीवं निज्जीवं ७२. सउणरूयं ८. सम्मुच्छिमखयर पंचिदिय तिरिक्ख जोणियाणं उक्कोसेणं बावतार वासहस्सा ठिई पण्णत्ता । सजीव निर्जीव: शकुनरुतम् । सम्मूच्छिम खचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां उत्कर्षेण द्विसत्तति वर्षसहस्राणि स्थितिः प्रज्ञप्ता । टिप्पण Jain Education International समवाय ७२ : सू० ८ ७०. पत्रच्छेद्य - निशानेबाजी, पत्रवेध । कटकच्छेद्य-क्रमपूर्वक छेदने की कला । पत्रकच्छेद्य - पुस्तक के पत्तों- ताड़पत्र आदि को छेदने की कला । ७१. सजीवकरण - मृत धातु को सजीव करना उसको अपने मौलिक रूप में ला देना । निर्जीवकरण - धातुमारण कला ७२. शकुनरुत शकुनशास्त्र । १. बहत्तर लाख आवास (बावर्त्तारं आवाससय सहस्सा ) दक्षिण निकाय के सुपर्णकुमारों के अड़तीस लाख और उत्तर निकाय वालों के चौंतीस लाख आवास हैं । ' २. बाह्य वेला (बाहिरियं वेलं ) यह वेला धातकीखंड द्वीपाभिमुखी है । यह सोलह हजार योजन ऊंची और दस हजार योजन चौड़ी है।' ८. सम्मूच्छिम खेचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति बहत्तर हजार वर्षों की है। ३. अचल भ्राता (अयलभाया ) ये भगवान् महावीर के नौवें गणधर थे। ये ४६ वर्ष गृहस्थावस्था में, १२ वर्ष छद्मस्थ अवस्था में और १४ वर्ष केवली अवस्था में रहे । ४. कलाएं बहत्तर हैं (बावत्तरों कलाओ ) प्रस्तुत आगम के अतिरिक्त ज्ञाताधर्मकथा, औपपातिक, राजप्रश्नीय और जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति की वृत्ति में भी बहत्तर कलाओं का कुछ नाम और क्रम-भेद के साथ उल्लेख मिलता है। उनका तुलनात्मक अध्ययन इस प्रकार है For Private & Personal Use Only १. समवायांगवृत्ति, पत्र ७८ । सुवर्णकुमाराणां द्विसप्ततिक्षाणि भवनानि कथं ? दक्षिण निकाये अष्टविशदुत्तरनिकाये तु चतुस्त्रिंशदिति । २. व्ही. पत्र ७८ । वेलां - षोडशसहस्रप्रमाणामुत्सेधतो विष्कम्भतश्च दशसहस्रमानां लवणजलधिशिखां वाह्यां घातकीखण्डद्वीपा भिमुखीम् । www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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