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________________ एगूणसट्ठिमो समवानो : उनसठवां समवाय संस्कृम छाया हिन्दी अनुवाद चंटरमण संवच्छरस्स एगमेगे उद चन्द्रस्य संवत्सरस्य एकैकः ऋतः १. चन्द्र-संवत्सर की प्रत्येक ऋत दिन-रात एगूणसर्टि राइंदियाणि राइंदिय- एकोनषष्ठि रात्रिन्दिवानि रात्रिन्दि- के परिमाण से उनसठ दिन-रात की ग्गेणं पण्णत्ते। वाग्रेण प्रज्ञप्तः। होती है। २. संभवे णं अरहा एगूणसट्टि पुव्वसय- सम्भवः अर्हत् एकोनषष्ठि पूर्वशतसह- २. अर्हत् संभव उनसठ लाख पूर्व' तक सहस्साई अगारमज्झावसित्ता स्राणि अगारमध्युष्य मुण्डो भूत्वा गृहवास में रह कर, मुंड होकर, अगार मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अगारात् अनगारितां प्रव्रजितः। अवस्था से अनगार अवस्था में प्रवजित अणगारिअं पव्वइए। हुए थे। ३. मल्लिस्स णं अरहओ एगूणसट्ठि मल्ल्याः अर्हतः एकोनषष्ठिः ३. अर्हत् मल्ली के उनसठ सौ अवधिज्ञानी ओहिनाणिसया होत्था। अवधिज्ञानिशतानि आसन्। टिप्पण १. उनसठ दिन-रात (एगूणसढि राइंदियाणि) चन्द्र की गति के आधार पर जो संवत्सर प्रवर्तित होता है, उसे 'चन्द्र-संवत्सर' कहते हैं। इसमें बारह महीने और दो दो महीनों की छह ऋतुएं होती हैं । प्रत्येक ऋतु ५६ दिन-रात की होती है। यहां की विवक्षा नहीं की गई है। स्थानांग में अनेकविध संवत्सरों का उल्लेख है। विशेष जानकारी के लिए देखें-ठाणं ५/२१०-२१३, टिप्पण पृ० ६४८, ६४६ । २. उनसठ लाख पूर्व (एगूणसटुिं पुव्वसयसहस्साई) __ आवश्यकनियुक्ति में इनके गृहवास का काल उनसठ लाख पूर्व तथा चार पूर्वाङ्ग है।' १. समवायांगवृत्ति, पत्न ७.: यश्चन्द्रगतिमंगीकृत्य संवत्सरो विवक्ष्यते स चन्द्र एव, तन्न च द्वादश मासा: षट् च ऋतवो भवन्ति, तत्र चैकक ऋतुरेकोनपष्टिरानिन्दिवानो रानिन्द्रिवाण भवति कथं एकोनत्रिंशद् रात्रिदिवानि द्वात्रिंशच्च षष्टिभागा अहोरावस्येत्येवंप्रमाण: कृष्णप्रतिपदमारभ्य पौर्णमासीपरिनिष्ठितः चन्द्रमासो भवति द्वाभ्यां च ताभ्यामृतुर्भवति, तत एकोनषष्टिः, अहोरात्राण्यसो भवति, यच्चेह द्विषष्टिभागद्वयमधिकं तन्न विवक्षितम् । २. मावश्यकनियुक्ति, गा० २७६, प्रवचूणि, प्रथम विभाग, पु० २१४ । पण्णरस सहसहस्सा, कुमारवासो म संभवजिणस्स । चोमालीसं रज्जे, चउरंग चेव बोद्धव्वं ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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