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________________ टिप्पण १. भगवान महावीर "प्ररूपणा कर (भगवं महावीरे "वागरित्ता) आयुष्य की अन्तिम रात्री के अन्तिम प्रहर में भगवान् महावीर मध्यम पापा में हस्तिपाल राजा की कार्य-सभा में पर्यङ्क आसन में स्थित थे। उस दिन कार्तिक अमावस्या थी। स्वाति नक्षत्र था। चन्द्रमायुक्त नागकरण था। प्रातःकाल के समय भगवान् ने पुण्य-कर्मों के शुभ फल को प्रकट करने वाले तथा पाप कर्मों के अशुभ फल को प्रकट करने वाले पचपन पचपन अध्ययनों का व्याकरण किया था। २. पचपन लाख नरकावास (पणपण्णं निरयावाससयसहस्सा) पहली पृथ्वी में तीस लाख तथा दूसरी में पचीस लाख नरकावास हैं ।' ३. उत्तर-प्रकृतियां पचपन हैं (पणपण्णं उत्तरपगडीओ) दर्शनावरणीय कर्म का नौ, नाम कर्म की बयालीस और आयुष्य कर्म की चार-इस तरह कुल उत्तर-प्रकृतियां ५५ हैं । १. समवायांगवृत्ति, पन ६६: सर्वायु:कालपर्यवसानरात्रौ रानेरन्तिमे भागे पापायां मध्यमायां नगर्या हस्तिपालस्य राज्ञः करणसभायां कात्तिकमासामावास्यायां स्वातिनक्षत्रेण चन्द्रमसा युक्तेन नागकरणे प्रत्युषसि पर्यकासननिषण्णः पञ्चपञ्चाशदध्ययनानि ..."कल्याणस्य-पुण्यस्य कर्मणः फलं-कार्य विपाच्यते-व्यक्तीक्रियते यैस्तानि कल्याणफलविपाकानि, एवं पापफलविपाकानि ब्याकृत्य-प्रतिपाद्य.... २. समवायांगवृत्ति, पन ६६ : प्रथमायां विशन्नरकलक्षाणि द्वितीयायां पञ्चविंशतिरिति पञ्चपञ्चाशत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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