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________________ चउवण्णइमो समवायो : चौवनवां समवाय मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. भरहेरवएसु णं वासेसु एगमेगाए भरतैरवतयोः वर्षयोः एकैकस्यां १. भरत और ऐरवत क्षेत्रों में प्रत्येक ओसप्पिणीए एगमेगाए उस्सप्पि- अवसर्पिण्यां एकैकस्यां उत्सपिण्यां अवपिणी और उत्सर्पिणी में चौवनणीए चउप्पण्णं-चउप्पणं उत्तम- चतुःपञ्चाशत-चतुःपञ्चाशत् उत्तम- चौवन उत्तम पुरुष हुए थे, होते हैं और पुरिसा उपज्जिसु वा उप्पज्जति पुरुषाः उदपदिषत वा उत्पद्यन्ते वा होंगे, जैसे–चौवीस तीर्थङ्कर, बारह वा उप्पज्जिस्संति वा, तं जहा- उत्पत्स्यन्ते वा तद्यथा-चतुर्विशतिः चक्रवर्ती, नौ बलदेव और नौ वासुदेव । चउवीसं तित्थकरा, बारस तीर्थकराः द्वादश चक्रवत्तिनः, चक्कवट्टी, नव बलदेवा, नव नव बलदेवाः नव वासुदेवाः । वासुदेवा। २. अरहा णं अरिटुनेमी चउप्पण्णं अर्हन अरिष्टनेमिः चतुःपञ्चाशद् २. अर्हत् अरिष्टनेमि चौबन दिन-रात तक राइंदियाइं छउमत्थपरियागं रात्रिन्दिवानि छद्मस्थपर्यायं प्राप्य छद्मस्थ-पर्याय का पालन कर जिन, पाउणित्ता जिणे जाए केवलो जिनो जातः केवली सर्वज्ञः सर्वभाव केवली, सर्वज्ञ और सर्वभावदर्शी हुए। सव्वण्ण सम्वभावदरिसी। दी । ३. समणे भगवं महावीरे एगदिवसेणं श्रमणो भगवान् महावीरः एकदिवसे ३. श्रमण भगवान महावीर ने एक दिन में एगनिसेज्जाए चउप्पण्णाई वागर- एकनिषद्यायां चतुःपञ्चाशद् एक ही आसन पर बैठे हुए चौवन प्रश्नों णाई वागरित्था। व्याकरणानि व्याकार्षीत् । का व्याकरण किया-उत्तर दिया।' ४. अणंतस्स णं अरहओ चउप्पणं अनन्तस्य अर्हतः चतुःपञ्चाशद् गणाः ४. अर्हत् अनन्त के चौवन गण और गणा चउप्पण्णं गणहरा होत्था। चतुःपञ्चाशद् गणधराः आसन् । चौवन गणधर थे। टिप्पण १. चौवन प्रश्नों का उत्तर दिया (चउप्पणाई वागरणाइं वागरित्या) भगवान महावीर से किसने कब, क्या और कहां चौवन प्रश्न किए और उन्होंने क्या उत्तर दिए, इसका आज विवरण प्राप्त नहीं है।' २. अर्हत् अनन्त के चौदह गणधर (अणंतस्स णं "चउप्पण्णं गणहरा) __ आवश्यकनियुक्ति में अर्हत् अनन्त के पचास गण तथा पचास गणधर बतलाए हैं। १. समवायांगवृत्ति, पन ६५ : एकेनासनपरिग्रहेण वागरणाइंति व्याक्रियन्ते-अभिधीयन्ते इति व्याकरणानि-प्रश्ने सति निर्वचनतयोच्यमाना: पदार्थाः....."व्याकृतवान् तानि चाप्रतीतानि । २.यावश्यकनियुक्ति गा० २६७, प्रवणि प्रथम विभाग, १११। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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