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________________ २१८ समवानो समवाय ५२ : सू० ४-५ ४. नाणावरणिज्जस्स नामस्स ज्ञानावरणीयस्य नाम्नः आन्तरायि- ४. ज्ञानावरणीय, नाम और अंतराय अंतरातियस्स-एतासि णं तिहं कस्य-एतासां तिसृणां कर्मप्रकृतीनां इन तीन कर्म-प्रकृतियों की उत्तरकम्मपगडोणं बावन्नं उत्तर- द्विपञ्चाशद् उत्तरप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः । प्रकृतियां बावन हैं।' पयडीओ पण्णत्ताओ। ५. सोहम्म - सणंकुमार - माहिदेसु- सौधर्म - सनत्कुमार - माहेन्द्रेषु –त्रिषु ५. सौधर्म, सनत्कुमार और माहेन्द्र-इन तिसु कप्पेसु बावन्नं विमाणावास- कल्पेषु द्विपञ्चाशद् विमानावासशत- तीन कल्पों में बावन लाख विमानावास सयसहस्सा पण्मत्ता। सहस्राणि प्रज्ञप्तानि । टिप्पण १. मोहनीय कर्म के (मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स) क्रोध, मान, माया और लोभ-ये चार कषाय मोहनीय कर्म के अवयव हैं। अवयवों में अवयवी का अथवा खंड में समृदय का उपचार कर इन चारों कषायों के पर्याय-नामों को मोहनीय के नामरूप में उल्लिखित किया है। इनमें क्रोध के दस, मान के ग्यारह, माया के सतरह और लोभ के चौदह नाम गिनाएं हैं। उनका योग (१०+११+१७-+१४) बावन होता है। २. तीन कर्म-प्रकृतियों की उत्तर-प्रकृतियां बावन हैं (तिण्हं कम्मपगडीणं बावन्नं उत्तरपयडीओ) ज्ञानावरणीय की पांच, नाम की बयालीस तथा अन्तराय की पांच-इस तरह कुल बावन उत्तर प्रकृतियां होती हैं। ३. बावन लाख विमानावास (बावन्नं विमाणावाससयसहस्सा) सौधर्म में बत्तीस लाख, सनत्कुमार में बारह लाख तथा माहेन्द्र में आठ लाख -इस तरह कुल ५२ लाख विमानावास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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