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________________ ४७ सत्तचालीसइमो समवाश्रो : सैंतालीसवां समवाय मूल संस्कृत छाया १. जया णं सूरिए सम्वन्भंतरमंडलं यदा सूर्यः सर्वाभ्यन्तरमण्डलं उपसंक्रम्य उवसंकमित्ताणं चारं चरइ तथा णं चारं चरति तदा इहगतस्य मनुष्यस्य इहायरस मणूसस्स सत्तचत्तालीसं सप्तचत्वारिंशता योजनसहस्रः द्वाभ्यां जोयणसहस्से हि दोहि य तेवट्ठेह च त्रिषष्ठ्या योजनशतैः एकविंशत्या जोसहि एक्कवीसाए य च षष्ठिभागैर्योजनस्य सूर्यः चक्षुः स्पर्श सट्टिभागह जोयणस्स सूरिए अर्वाग् आगच्छति । चक्खुफासं हव्वमागच्छइ । २. येरे णं अग्निभूई सत्तालीसं वासाई अगारमज्झा वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । स्थविर: अग्निभूतिः सप्तचत्वारिंशद् वर्षाणि अगारमध्युष्य मुण्डो भूत्वा अगारात् अनगारितां प्रव्रजितः । टिप्पण १. ४७२६२६ योजन की दूरी (सत्तचत्तालीसं जोयणसहस्सेहि 'जोयणस्स) जम्बूद्वीप एक लाख योजन का है। आभ्यंतर सूर्यमंडल का विष्कंभ आता है। Jain Education International हिन्दी अनुवाद १. जब सूर्य सर्व आभ्यंतर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है तब यहां १ समवायांगवृत्ति, पत्र ६६ । २. घावश्यक नियुक्ति, गा० ६५०, अवचूर्णि प्रथम विभाग, पृ० ३०७ । रहे हुए मनुष्य को वह ४७२६३२१ ६० योजन की दूरी से दिखलाई पड़ता है ।' उसके दोनों पावों में १५०-१८० योजन अर्थात् ३६० योजन को छोड़ने से वह ६९६४० योजन है। उसकी परिधि ३१५०८६ योजन होती है । इस परिधि को सूर्य साठ मुहूर्त्त में पार करता है । अतः एक मुहूर्त में सूर्य ( ३१५०८९ ÷ ६० ) ५२५१६ योजन गति करता है । जब सूर्य आभ्यंतर मंडल में गति करता है तब दिवस अठारह मुहूर्त का होता है। इसके आधे नौ हुए। एक मुहूर्त्त की गतिको नौ से गुणित करने पर (५२५१०३८x९) ४७२६३ २०८० योजन प्राप्त होते हैं ।' २. स्थविर अग्निभूति सैंतालीस वर्ष तक गृह में रह कर मुंड हुए और अगार से अनगार अवस्था में प्रव्रजित हुए । २. सैंतालीस वर्ष (सत्तालीसं वासाइं) आवश्यक निर्वृक्ति में अग्निभूति का गृहवास छियालीस वर्ष का बतलाया है और यहां सैंतालीस वर्ष का। संभव है वे छियालीस वर्षों से कुछ अधिक समय तक गृहवास में रहे हों । अतः यह भेद पूर्णता और अपूर्णता की अपेक्षा से है ।' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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