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________________ नाम-बोध प्रस्तुत ग्रन्थ में नौ उपांग हैं। उसमें पहला है पण्णवणा (प्रज्ञापना) । इसमें जीव और अजीव इन दो तत्त्वों का विस्तार से प्रज्ञापन किया गया है।' इसके प्रथम पद का नाम प्रज्ञापना है । संभवतः इस आदि पद के कारण ही इसका नाम प्रज्ञापना रखा गया है ! प्रज्ञापना का एक कार्य प्रश्नोत्तर के माध्यम से तत्त्व का प्रतिपादन करना है । प्रस्तुत आगम में प्रश्नोत्तर के द्वारा तत्त्व का प्रतिपादन किया गया है । इसलिए भी इसका नाम प्रज्ञापना हो सकता है। प्रारंभिक गाथाओं में इस आगम को "अध्ययन" भी कहा गया है। इससे प्रतीत होता है कि इसका एक नाम 'अध्ययन" रहा है। इसका संबंध दृष्टिवाद (वारहवें अंग) से है इसलिए इसे दृष्टिवाद का निःस्यन्द या सार कहा गया है ।" विषयवस्तु १. पवना, गा० २ २. बही ३ ३. वही, १०३२ ४. नन्दी, ७३-७७ भूमिका प्रस्तुत आगम के ३६ पद हैं । उनमें जीव और अजीव के विभिन्न पर्यायों का प्रतिपादन किया गया है । यह तत्त्व-विद्या का अर्णव ग्रन्थ है। इसके अध्ययन से भारतीय तत्त्व-विद्या के गहन स्वरूप को समझा जा सकता है। प्रथम पद में वनस्पति जीवों के दो वर्गीकरण उपलब्ध हैं:- प्रत्येकशरीरी और साधारणशरीरी साधारणशरीरी का चित्र समाजवाद का ऐसा अनूठा चित्र है जिसकी मनुष्यसमाज में कल्पना नहीं की जा सकती । इसमें आर्य और म्लेच्छ का विशद वर्णन है । प्रस्तुत आगम तत्व ज्ञान का आकर-ग्रन्थ है भगवती अंगप्रविष्ट आगम है और यह उपांग कोटि का आगम है । ये दोनों तत्व-ज्ञान की दृष्टि से परस्पर जुड़े हुए हैं । देवधिगणी ने भगवती में प्रज्ञापना के अधिकांश भाग का समावेश किया है वहां बार-बार "जहा पण्णवणार" का उल्लेख है। प्रस्तुत आगम के प्रत्येक पद में गूढ़ तत्त्वों की एक व्यूह-रचना सी उपलब्ध है । इसमें लेश्या और कर्म के विषय में अनेक महत्वपूर्ण सूत्र मिलते हैं । नन्दीसूत्र में आगमों के दो वर्गीकरण किए गए हैं अंगप्रविष्ट और अंगका अंगवार के दो प्रकार है आवश्यक और आवश्यकव्यतिरिक्त आवश्यकव्यतिरिक्त के फिर दो प्रकार बनाए गए हैकालिक और उत्कालिक प्रस्तुत आगम अंगवा ह्य, आवश्यकव्यतिरिक्त और उत्कालिक है। नंदी में अंग और अंगबाह्य के संबंध की कोई चर्चा नहीं है। आगम व्यवस्था के उत्तरकाल में अंग और Jain Education International पण्णवणा 37 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003577
Book TitleAgam 21 Upang 10 Pushpika Sutra Puffiyao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages414
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pushpika
File Size8 MB
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