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अन्तस्तोष
अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित हुमनिकुंज को पल्लवित पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोधपूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुधमी क्षण उसमें लगे संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया । अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सवको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहें हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है
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संपादक : युवाचार्य महाप्रज्ञ पाठ-संशोधन सहयोगी मुनि सुदर्शन मुनि हीरालाल मुनि श्रीचन्द्र 'कमल'
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शब्दकोश
संविभाग हमारा धर्म है जिन-जिनने इस गुस्तर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूं कि उनका भविष्य इस महान् कार्य का भविष्य बने ।
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आचार्य तुलसी
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