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________________ ८० किसंठिया ( किंसंस्थित) प ११:३० किय ( किंशुक) ज ३।१८८ figrgrफ (किंशुकपुष्प ) प १७।१२६ किच्च ( कृत्य ) उ १६२ किच्चा ( कृत्वा ) ज २२४६ उ १।२५ ३ १४; ४१२४; ५१२८ किच्छ ( कृच्छ्र) ज ३|१०८ से १११ किटिभ (किटिभ) ज २।१३३ किट्टि (किट्टी ) प ११४८४ किट्ठीय (क्रिट्टिया ) प १२४८२ किक्षिण ( किठिण) उ ३।५१, ५३, ५५,५६,६३,६४, ६७,६८,७०,७१,७३,७४,७६ किणा ( कथं ) प १५१५३ किणं (किंनं) ज ३११२४ उ १६६ किण्णर ( किन्नर ) प २।४५,४५२ ज १।३७; २११०१;३१११५,१२४, १२५, ४२७ : ५।२८ किण्णा ( कथं ) उ५।२३ किण्ह (कृष्ण) प १२४८६ कालीमीचं, करौंदा किन्ह (कृष्ण) प २ २१ से २७ ज १।१३,१४; २१७,१२,२३, १६४, ४५२६, ११४, ११६,१२६, २०१,२१५,२४०,२४१ सू १६।२२।१७ ; २०१२ उ ३२४६ किष्कणवीर (कृष्णकरवीरक) प १७ १२३ किष्णकेसर (कृष्णकेशर) प १७।१२३ किण्हपत्त ( कृष्णपत्र ) प ११५१ किह बंधुजीवय (कृष्ण बन्धुजीवक ) प १७ १२३ किण्हन्भ (कृष्णा) ज २११५ किहमत्तिया ( कृष्णमृत्तिका ) प १।१६ किण्हय ( कृष्णक) प ११४८।६२ किण्हलेसा (कृष्णलेश्या) प १७/२१ किण्हलेस (कृष्णलेश्य ) प ३६६, १७३१, ८४; २३।१६६ किण्हलेस्सा (कृष्णलेश्या ) प १७ ३७,११,१२०, १२२,१२३,१३६ feosसुत्तय (कृष्णसूत्र ) प १७ ११६ Jain Education International किसंठिय- कीलंत किव्हा (कृष्णा) ज ११२३, २।१२ किव्हा सोय ( कृष्णाशोक ) प १७।१२३ कण्होमास ( कृष्णावभास) ज ४।२१५ उ ३३४ कित्ति (कीर्ति) ज ३३१७,१८,२१,३१,६३,१७७, १८० उ ४।२।१ कित्ति ( कूड) (कीर्तिकूट ) ज ४२२६३|१ कित्तिम ( कृत्रिम ) ज १।२१,२६,४६, २०५७, १४७, १५०, १५६ कित्तिय (कीर्तित ) प १२४८१६३ किन्नर ( किन्नर ) प १११३२; २१४१ किन्नरछाया ( किन्नरछाया ) प १६/४७ saafar (किल्विषक ) प २०१६१ ज ३(१८५ किमंग ( किमङ्ग) उ १११७ ; ३११०२ किमिरागकंबल ( कृमिरागकम्बल) प १७ १२६ किमिरासि ( कृमिर राशि ) प १२४८/६ किर (किल ) ज २२६ सू २०१४ किरण ( किरण ) ज २०१५; ३ २४ किरिया (क्रिया) प ११११६; १७ ११,२२,२३, २५,३०,३३,२२११ से ५, ६ से १६, २६, २७, २६,३०,३२ से ५०,५२ से ६३,६५ से ६६, ७१ से ७४,७६, ६१ से ६४,६७ से ६६,१०१; २६।१०:३६६२ से ६४,६७,६८,७१,७७,७८ ज ७१५२ किरिया (es) (क्रियारुचि ) प १।१०१।१,१० fafrates ( क्रियारुचि) प १।१०१।१० किलकिलाइय ( किलकिलायित) ज ७ १७८ / किलाव ( क्लम्) किलावेंति प ३६६२ किवणबद्दल (कृपणबहुल ) ज १।१८ किलेस (क्लेश) चं १२ सू २०१६ किसलय ( किसलय ) प ११४८।५२ किसि (कृषि) ज २३ कोड (कीट) प १३५१११ 1. कोड ( क्रीड् ) क्रीडति ज ११३०,३३ V/ कील (क्रीड) कोलंति ज १३१३४१२ कीin (क्रीडत्) ज ३११७८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003571
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Pannavanna Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages745
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size14 MB
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