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________________ ८१८ अठहत्तर (अष्टसप्तति ) ज ७१३२,३४ अट्ठा ( अप्टा) ज २१६५ अट्ठाणउइ (अष्टनवति) ज ७६८ अट्ठानउति (अष्टनवति ) सू १०।१६५ अट्ठाण (अष्टनवति) सू १०११७३ अट्ठार (अष्टादशन् ) प १०।१४१४ से ६ ज ४।६२ अट्ठारस (अष्टादशन् ) प २१२४ जं १।४८ सू १११३ १११०४ अट्ठारसक ( अष्टादशवक्र) उ १६६, १०२ से ११७, ११६, १२७,१२८ अट्ठारस विह (अष्टादशविध ) प १३६८ अट्ठावण्ण (अष्टपञ्चाशत ) ज ४३१४२ अट्ठावय (अष्टापद ) ज २।१५,८८, ६०, ३१२२४ अट्ठावीस (अष्टाविंशति ) प २१२३ ज ११७ सू ११४ अवभाग (अष्टाविंशतिभाग) सू १०।१४२ अट्ठावीस (अविशतिविध ) ज ७ । ११३ सू १०।१३० अट्ठावीसतिभाग (अष्टविंशतिभाग ) प २३१०२ से १०४,१५२ सू १२/३० अट्ठावीसतिविह (अष्टाविंशतिविध ) प ११८६ २१४८ अट्ठावीसविमाणसयसहस्साहिवद (अष्टाविंशतिविमानशतसहस्राधिपति) ज २२६१ अटासीइ (अष्टाशीति ) सू २०१८६ अट्ठासीति (अष्टाशीति) सू १८१४, २०१८ अट्ठासीय (अष्टाशीति) ज १।२३ सू १० १४१ अट्ठाहिय ( अष्टाहिक ) ज २।११७ से १२०, ३।१२ से १४,२८,३०, ४१, ४२,४३,४१ से ५१.५८ से ६०, ६६ से ६८,७४ से ७६,१३६,१३६,१४७ से १५१,१६८ से १७० ५२७४ २८१११,२८१३, २५, २८, ३७, अट्ठ (अर्थिन् ) ४६, ज ३११०६ अट्ठकच्छभ ( अस्थिकच्छप ) प ११५७ अयि ( अस्थित ) प ११८० से ८ ३ अयि (अस्थित ) प ११।४७ Jain Education International अट्ठहत्तर- अनंत अड (दे० ) प ११७६ अडड ( अटट) ज २३४ अडडंग (अटटाङ्ग ) ज २१४ अडतालीस (अष्टचत्वारिंशत् ) सू १।२३ अडमाण ( अटत् ) उ ३।१००, १३३ अडयाल' (दे० ) प २३० अडयाल (अष्टचत्वारिंशत् ) ज ११२० सू १३२४ अडयालीस (अप्टचत्वारिंशत् ) ज २२६ सू ११२४ अडवीबहुल (अटवीबहुल ) ज १११८ अडसठ (अष्टषष्टि) सू १५/२ अडिल ( अटिल ) प १७८ अड्ढ (आय) ज ३११०३ उ १ । १४१३ १०,२१ २८,६६,१५८, ४/७ अढाइज्ज (अर्धतृतीय) प १ ३४,८४,२७,२६; १८४५, २१।६६,६७,३३१५,६ ११३८,४३१ ४।१०,१२,४३,४५,५७,७२,७८, ११०, १४७, १८३,२१५,२२१,२४५, २४८, ५१५२सू २।२३ १८/१ अनंगसेणा ( अनङ्गसेना) उ ५ | १०,१७ अनंत (अनन्त) प१1१३,४८१४८७, ८, १० से १६,३० से ३३, ३५ से ४२,५०,५२,५७,५८, ६०,२६४।१०,११,१३, १५, १६,५३२ से ७, ६ से २०, २३, २४, २७ से ३४,३६,३७,४०, ४१,४४,४५,४८,४६, ५२, ५३, ५५, ५६, ५८, ५६, ६२,६३,६७,६८,७०,७१,७३,७४,७७, ८२, ८३ ८५,८८,६२,६६,१००,१०१, १०३,१०६,११० ११४,११८,११६,१२६ से १३०,१३३,१३५, १३७,१३६, १४२,१४४, १४६, १४९ से १५४ १५६,१६२,१६५,१६८, १७१, १७३, १७६, १८०,१८३,१८६, १८६,१६२,१६६, १६६, २०२ २०६,२१०,२१३,२१७,२२०, २२३, २२७, २२६,२३१,२३३, २३८, २४१,६६३; १०।१६, १८ से २०,१२।७ से ११,२०,१५।१४, १५, २७,३२,५७,८३,८४,८७,८६ से ९६, १०३, १०४,१०६,११२,११५,११८,११६,१२१, १ अडयाल शब्दो देशीवचनत्वात् प्रशंसावाची For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003571
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Pannavanna Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages745
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size14 MB
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