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________________ भगवई खंधे, एगयो संखेज्जपएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयो दो परमाणुपोग्गला, एगयो दो संखेज्जपएसिया खंवा भवंति; अहवा एगयो परमाणुपोग्गले, एगयो दुपएसिए खंबे, एगयनो दो संखेज्जपएसिया खंधा भवंति जाव अहवा एगयनो परमाणुपोग्गले एगयो दसपएसिए खंधे, एगयो दो संखेज्जपएसिया खंधा भवंति ; अहवा एगयो परमाणुपोग्गले, एगयओ तिणि संखेज्जपए सिया खंधा भवति ; अहवा एगयनो दुपएसिए खंधे, एगयनो तिष्णि संखेज्जपएसिया खंधा भवंति जाव अहवा एगयनो दसपएसिए खंधे, एगयनो तिणि संखेज्जपएसिया खंधा भवंति; अहवा चत्तारि संखज्जपएसिया खंधा भवंति; एवं एएणं कमेणं पंचगसंजोगो वि भाणियन्वो जाव नवगसंजोगो। दसहा कज्जमाणे एगयो नव परमाणुपोग्गला, एगयनो संखेज्जपए सिए खंधे भवइ; अहवा एगयनो अट्ठ परमाणुपोग्गला, एगयो दुपएसिए, एगयनो संखेज्जपएसिए खंधे भवइ । एएणं कमेणं एक्केक्को पूरेयव्वो जाव अहवा एगयो दसपएसिए खंधे, एगयो नव संखेज्जपएसिया खंधा भवंति; अहवा दस संखेज्जपएसिया खधा भवति । सखज्जहा कज्जमाण सखज्जा परमाणपोग्गला भवति । ७६. अखेज्जा भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति', साहणित्ता किं भवइ ? गोयमा ! असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ । से भिज्जमाणे दुहा वि जाव दसहा वि, संखेज्जहा वि, असंखेज्जहा वि कज्जइ -दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयनो असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ जाव अहह्वा एगयो दसपएसिए खंधे भवइ, एगयो असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ; अहवा एगयनो संखेज्ज. पएसिए खंधे, एगयओ असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ; अहवा दो असंखेज्जपएसिया खंधा भवति । तिहा कज्जमाणे एगयो दो परमाणुपोग्गला, एगयो असंखेज्जपएसिए खंध भव; अहवा एगयो परमाणपोग्गले. एगयो दपएसिए खंधे, एगयनो असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ जाव अहबा एगयनो परमाणुपोग्गले, एगयो दसपएसिए खंधे, एगयो असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ ; अहवा एगयनो परमाणुयोगले, एगयो संखेज्जपएसिए खंधे, एगयो असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ ; अहवा एगयनो परमाणुपोग्गले, एगयो दो असंखेज्जपएसिया खंधा भवंति ; अहवा एगयनो दुपएसिए खंधे, एगयओ दो असंखेज्जपएसिया खंधा भवंति ; एवं जाव अहवा एगयो संखेज्जपएसिए खंधे, एगयो दो असंखेज्जपएसिया खंधा भवंति; अहवा तिण्णि असंखेज्जपएसिया खंधा भवंति । चउहा कज्जमाणे एगयनो तिणि परमाणुपोग्गला, एगयनो असंखेज्जपएसिए खंधे भवइ; एवं चउक्कगसंजोगो जाव दसगसंजोगो । एए जहेव सांखेज्जपएसियस्स, नवरं असंखेज्जगं एग अहिगं भाणियव्वं जाव अहवा दस १. साहणंति (अ, क, ख, म, स)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003561
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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