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विनाश की दृष्टि से वह तीन भागों में विभक्त है । गति । गति चतुष्टय में परिभ्रमण करने के कारण वह चार भागों में विभक्त है। पारिणामिकआदि पांच भावों की दृष्टि से वह पांच भागों में विभक्त है। भवान्तर में संक्रमण के समय पूर्व पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उष्वं और अध: इन छह दिनाओं में गमन करने के कारण वह छह भागों में विभक्त है । स्यादस्ति स्यादुनास्ति की सप्तभंगी की दृष्टि से वह सात भागों में विभक्त है । आठ कर्मों की दृष्टि से वह आठ भार्गो में विभक्त है। नौ पदार्थों में परिणमन करने के कारण वह नी भागों में विभक्त है पृथिवीकाधिक जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, प्रत्येक वनस्पतिकायिक, साधारण वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रिवजाति चतुरिन्द्रियजाति और पंचेन्द्रियजाति की दृष्टि से वह दस भागों में विभक्त है।' इसी प्रकार प्रस्तुत आगम पुद्गल आदि के एकत्व तथा दो से दस तक के पर्यायों का वर्णन करता है। पर्यायों की दृष्टि से एक तस्य अनन्त भागों में विभक्त हो जाता है और द्रव्य की दृष्टि से वे अनन्त भाग एक तत्व में परिणत हो जाते हैं। प्रस्तुत आगम में इस अभेद और भेद की व्याख्या उपलब्ध है ।
नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का चौथा अंग है। इसका नाम समवाओ हैं । इसमें जीव -अजीव आदि पदार्थों का परिच्छेद या समवतार है, इसलिए इसका नाम रामदाओ है। दिगम्बर साहित्य के अनुसार इसमें जीव आदि पदार्थों का साय-सामान्य के द्वारा निर्णय किया गया है, इसलिए इसका नाम समयाओं है ।
समवाओ
समवाओं में द्वादशांगी का वर्णन है । यह द्वादशांगी का चौथा अंग है; इसलिए इसमें इसका विवरण भी प्राप्त है ।
द्वादशांगी का कम प्राप्त विवेचन नन्दी सूप में है उसके अनुसार समयाओ की विषयसूची इस प्रकार है---
१. जीव-अजीव, लोक अलोक और स्वसमय-परसमय का समवतार
२. एक से सौ तक की संख्या का विकास ।
१. कसायपाहुड भाग पृ० १२३
२. समवायांग वृत्ति, पत्र १ :
समिति सम्यपत्याविनयेन चयनमयः परिच्छेदो जीवाजीवादिविविधपदार्थसार्थस्य परम समवायः, समवयन्ति वा -- समवसरन्ति संमिलन्ति नानाविद्या आत्मादयो भावा अभिधेयतया यस्मिन्नसो समवाय इति ।
२. गोमटसार, जीवकाण्ड, जीवप्रबोधिनी टीका, याथा ३५६
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[सं-संग्रहेष सादृश्यसामान्येन प्रज्ञायन्ते जीवादिपदार्था इथभावनाश्रित्य यस्मिन्निति समवायाङ्गम् ।”
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