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१०. विधि-पूर्वक भिक्षा का ग्रहण । ११. स्त्री, पशु, क्लीव आदि से रहित शय्या ! १२. गति-शुद्धि । १३. भाषा-शुद्धि । १४. वस्त्र की एषणा-पद्धति । १५. पात्र की एषणा-पद्धति । १६. अवग्रह-शुद्धि । १७. स्थान-शुद्धि । १८. निषद्या-शुद्धि । १६. व्युत्सर्ग-शुद्धि । २०. शब्दासक्ति परित्याग । २१. रूपासक्ति-परित्याग । २२. परक्रिया-वर्जन । २३. अन्योन्यक्रिया-वर्जन । २४. पंच महाव्रतों की दृढ़ता। २५. सर्वसंगों से विमुक्तता।
नियुक्तिकार ने नव ब्रह्मचर्य अध्ययनों के विषय इस प्रकार बतलाए हैं--- १. सत्थपरिणा-जीव संयम । २. लोगविजय-बंध और मुक्ति का प्रबोध । ३. सीओसणिज्ज-सुख-दुःख-तितिक्षा। ४. सम्मत्त---सम्यक-दृष्टिकोण ! ५. लोग सार–असार का परित्याग और लोक में सारभूत रत्नत्रयी को आराधना । ६. धुय---अनासक्ति। ७. महापरिणामोह से उत्पन्न परीषहों और उपसर्गों का सम्यक सहन । ८. विमोक्ख-निर्याण (अंतक्रिया) की सम्यक -आराधना । ६. उ वहाणसुय--- भगवान् महावीर द्वारा आचरित आचार का प्रतिपादन।
१. आचारांग नियुक्ति, गाथा ३३, ३४ :
जिअसंजमी अ लोगो जह बज्झइ जह य तं पजहियव्वं । सुहदुक्खतितिक्खाबिय, सम्मत्तं लोगसारो य॥ निस्संगया य छठे मोहसमुत्या परीसहुक्सम्मा। निजाणं अठ्ठमए नवमे य जिणेण एवंति ।
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