SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किया गया है। तीसरे बलदेव-वासूदेव के पिता का नाम रुह है, किन्तु समवायांग की हस्तलिखित वत्ति में 'रुट' के स्थान में 'सोम' है । वस्तुतः 'सोम' के बाद रुट्ट' होता चाहिए। समवाय ३० (सूत्र १, गाथा २६) में सभी सभी आदर्शों में 'सज्झायवायं' पाठ मिलता है । वृत्तिकार ने भी उसकी स्वाध्यायवादं-- इस रूप में व्याख्या की है । अर्थ की दृष्टि से यह संगत नहीं है । दशाश्र तस्कन्ध (सूत्र २६) में उक्त गाथा उपलब्ध है। उसमें 'सज्झायवाय' के स्थान पर 'सब्भाववायं' पाठ है। दशा तस्कन्ध के वत्तिकार ने इसका संस्कृत रूप 'सद्भाववाद' किया है । अर्थ-मीमांसा करने पर यह पाठ संगत प्रतीत होता है। प्राचीन लिपि में संयुक्त 'झकार' और संयुक्त 'भकार' एक जैसे लिखे जाते थे। इस प्रकार के लिपिहेतुक पाठ-परिवर्तन अनेक स्थानों में प्राप्त होते हैं। प्रति परिचय (क) समवायांग मूलपाठ यह प्रति जैसलमेर भंडार की ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट) मदनचन्दजी गोठी, सरदारशहर द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ६४ तथा पृष्ठ १२८ हैं किन्तु २४ वां पत्र नहीं है। प्रत्येक पृष्ठ में ४ या ५ पंक्तियां हैं तथा प्रत्येक पंक्ति में ११० अक्षर हैं। लिपि सं० १४०१ । (ख) समवायांग मूलपाठ (पंचपाठी) यह प्रति गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है। बीच में मूलपाठ एवं चारों ओर वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र १०६ तथा पृष्ठ २१२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में पंक्तियां तथा प्रत्येक पक्ति में ३०,३२ अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है। इसके अन्त में संवत् दिया हुआ नहीं है। किन्तु पत्रों की जीर्णता व लिपि के आधार पर यह पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी के लगभग की है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है-- ॥छ।। समवाउ चउत्थमंग 11छ। अंकतोपि ग्रंथान १६६७ ॥छ।। (ग) समवायांग मूलपाठ (पंचपाठी) यह प्रति गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है। बीच में मूलपाठ एवं चारों तरफ वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र ८१ तथा पृष्ठ १६२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में ५ से १२ पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ४७ तक अक्षर हैं । यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४ इंच चौड़ी है । लिपि संवत् १३४५ लिखा है; पर संवत् की लिखावट से कुछ संदिग्ध सा लगता है। फिर भी प्राचीन है। अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है १. देखें, समवाप्रो, पइण्णगसमवामो सू० २३० का पाद-टिप्पण। २. देखें, समवायो, समवाय ३०, सू० १, गाथा २६ का दूसरा पाद-टिप्पण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003558
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages365
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy