SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तं चेव-तं चेव भाणियब्वं वरं च उत्याए जाणतं (१११४६-१५४) सेसं तं चेव एवं ससरक्खे (१९६५) हेट्ठिमो--एवं हेट्ठिमो गमो पायादि भाणियन्वो (१३।४०-७५) आचारांग का वाचना-भेद समवायांग में आचारांग की अनेक वाचनाओं का उल्लेख मिलता है। वाचना का अर्थ है-अध्यापन या सूत्र और अर्थ का प्रदान | संक्षिप्त वाचना-भेद अनेक मिलते हैं, किन्तु वर्तमान में मुख्य दो वाचनाएं प्राप्त हैं- एक प्रस्तुत-वाचना और दूसरी नागार्जुनीय-वाचना। चूणि और टीका में नागार्जुनीय वाचना-सम्मत्त पाठों का उल्लेख किया गया है। देखें--'आयारों' पृष्ठ २० पादटिप्पण संख्यांक १०, पृष्ठ २१ पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ३० पाद टिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ३१ पादटिप्पण संख्यांक ७, पृष्ठ ३५ पादटिप्पण संख्यांक ५, पृष्ठ ५४ पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ४० पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ५० पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ५२ पादटिप्पण संख्यांक ६ और ८, पृष्ठ ५४ पादटिप्पण संख्यांक ६, पृष्ठ ५५ पादटिप्पण संख्यांक ८, पृष्ठ ६६ पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ७३ पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ७५ पादटिप्पण संख्यांक ४ । आचारांग के उद्धृत पाठ-- उत्तरवर्ती अनेक ग्रंथों में आचारांग के पाठ उद्धृत किए गए हैं। अपराजितसूरि ने मूलाराधना की टीका में आचारांग के कुछ पाठ उद्धृत किए हैं। शोध करने पर ऐसा ज्ञात हआ है कि कई पाठ आचारांग में नहीं हैं, कई पाठ शब्द-भेद से और कई पाठ आंशिक रूप में मिलते हैं। तुलनात्मक अध्ययन की दष्टि से दोनों के पाठ नीचे दिए जा रहे हैं आचारांग मूलाराधना तथा चोक्तमाचाराङ्ग:सुदं मे आउस्सन्तो भगत्रदा एव मक्खादं । इह खलु संयमाभिमुखा दुविहा इत्थी पुरिसा जादा भवंति । तं जहा-सव्व समण्णा गदे णो सब्द समागदे चेव । तत्थ जे सव्व समपणागदे थिराग हत्थ पाणि पादे सव्विदिय समण्णागदे तस्स णं णो कप्पदि एगमवि वत्थं धारि १. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० १३६ । २. मूलाराधना ४।४२१, टीका पन ६१२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003558
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages365
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy