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________________ मुद्रण-कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकत्ता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन (भूतपूर्व मुनि) को समर्पित सेवा भी स्मरणीय है। इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोडिया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा। इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजीहंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। सन १९७३ में मैं जैन विश्व-भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चुना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे। दिल्ली में मद्रण की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा । स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है। उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है । मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सुन्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत्वंद्य श्रमण भगवान महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है। ४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली-६ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन अन विश्व-भार तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003558
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages365
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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