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________________ ४५६ भगवई से जहानामए केइ गाहावई गारंसि भियायमाणंसि जे से तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगरुए, तं गहाय आयाए एगंतमंतं प्रवक्कमइ । एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ | एवामेव देवाणुपिया ! मज्झ वि श्राया एगे भंडे इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेस्सासिए सम्म बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे, माणं सीयं, माणं उन्हं, माणं खुहा, माणं पिवासा, माणं चोरा, माणं वाला, माणं दंसा, माणं मसया, माणं वाइय- पत्तिय-सेंभिय- सन्निवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतुति कट्टु एस मे नित्थारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए ग्राणुगामियत्ताए भविस्सइ । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! सयमेव पव्वावियं, सयमेव मुंडावियं, सयमेव सेहावियं सयमेव सिक्खावियं सयमेव ग्रायार- गोयरं विणय- वेणइय-चरणकरण-जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं ॥ ० २१५. तए णं समणे भगवं महावीरे जमालि खत्तियकुमारं पंचहि पुरिससएहिं सद्धि सयमेव पव्वावेइ जाव' सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई ग्रहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहि चउत्थ छट्ठट्ठम - दसम - दुवाल सेहिं विचितेहि तवोकम्मेहिं प्रप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ मासद्ध- मासखमणेहिं २१६. तए णं से जमाली अणगारे अण्णया कयाइ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहि ग्रब्भणुण्णाए समाणे पंचहि अणगारसहि सद्धि बहिया जणवयविहारं विहरित्तए ॥ नो २१७. तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स एयमट्ठे नो आढाइ, परिजाइ, तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ २१८. तए णं से जमाली अणगारे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्च पि एवं वयासी - इच्छामि णं भंते ! तुभेहि ग्रब्भणुण्णाए समाणे पंचहि अणगारसएहिं सद्धि बहिया जणवयविहारं विहरित्तए || २१६. तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स दोच्चं पि तच्चं पि एयमट्ठ नो प्रढाइ, "नो परिजाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ | २२०. तए णं से जमाली अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवश्रो महावीरस्स ग्रंतिया बहुसालाम्रो चेइयाओ Jain Education International १. भ० २५३.५७ । २. सं० पा०- छट्टट्ठम जाव मासद्ध । ३. सं० पा०सद्धि जाव विहरित्तए । ४. सं० पा० - प्राढाइ जाव तुसिणीए । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003552
Book TitleAngsuttani Part 02 - Bhagavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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