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________________ नवमं सर्वं (बत्तीसइमो उद्देसो) ४१५ ८८. एगे भंते! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होज्जा, सक्करपभाए होज्जा जाव प्रहेसत्तमाए होज्जा ? गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव आहेसत्तमाए वा होज्जा | ८६. दो भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव सत्तमाए होज्जा ? गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा । हवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए होज्जा, ग्रहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा जाव एगे रयणप्पभाए एगे ग्रसत्तमाए होज्जा । ग्रहवा एगे सक्करपभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा जाव ग्रहवा एगे सक्करप्पभाए एगे ग्रसत्तमाए होज्जा । ग्रहवा एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा, एवं जाव ग्रहवा एगे वालुयप्पभाए एगे असत्तमाए होज्जा । एवं एक्का पुढवी छड्डेयव्वा जाव श्रहवा एगे तमाए एगे प्रसत्तमाए होज्जा' ॥ १०. तिणि भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जावसत्तमाए होज्जा ? गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव ग्रसत्तमाए वा होज्जा । हवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए होज्जा जाव ग्रहवा एगे रयणप्पभाए दो ग्रसत्तमाए होज्जा । ग्रहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए होज्जा जाव हवा दो रयणप्पभाए एगे ग्रसत्तमाए होज्जा । ग्रहवा एगे सक्करप्पभाए दो वालुभाए होज्जा जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए दो आहेसत्तमाए होज्जा | हवा दो सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा जाव ग्रहवा दो सक्करप्पभाए एगे असत्तमाए होज्जा, एवं जहा सक्करप्पभाए वत्तव्वया भणिया, तहा सव्वपुढवीणं भाणियव्वं जाव ग्रहवा दो तमाए एगे ग्रसत्तमाए होज्जा ॥ अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा जाव अहवा एंगे रणभाए एगे सक्करप्पभाए एगे प्रसत्तमाए होज्जा । ग्रहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा, ग्रहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुभाए एगे धूमप्पभाए होज्जा, एवं जाव ग्रहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुभाए एगे असत्तमाए होज्जा । ग्रहवा एगे रयणप्पभाए एगे पंकप्पभाएगे धूमप्पभाए होज्जा जाव ग्रहवा एगे रयणप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे असत्तमाए होज्जा । श्रहवा एगे रयणप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए २. द्विसंयोगजा भङ्गाः ४२ । १. द्विसंयोगजा भङ्गाः २१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003552
Book TitleAngsuttani Part 02 - Bhagavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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