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________________ अट्ठमं सतं (छट्ठो उद्देसो) ३५७ ४. से य संपट्ठिए असंपत्ते, अप्पणा य पुव्वामेव कालं करेज्जा । से णं भंते ! कि आराहए? विराहए? गोयमा ! आराहए, नो विराहए। ५. से य संपट्ठिए संपत्ते, थेरा य अमुहा सिया । से णं भंते ! कि पाराहए ? विराहए ? गोयमा ! आराहए, नो विराहए। ६. से य संपट्ठिए संपत्ते अप्पणा य "अमुहे सिया । से णं भंते ! किं आराहए ? विराहए ? गोयमा ! पाराहए, नो विराहए। ७. से य संपट्टिए संपत्ते, थेरा य कालं करेज्जा। से णं भंते ! कि पाराहए ? विराहए ? गोयमा ! पाराहए, नो विराहए । ८. से य संपट्ठिए संपत्ते अप्पणा य कालं करेज्जा । से णं भंते कि आराहए ? विराहए ? गोयमा ! पाराहए, नो विराहए ॥ २५२. निग्गंथेण य बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खंतेणं अण्णयरे अकि च्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति-इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स पालोएमि–एवं एत्थ वि ते चेव अट्ठालावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए। २५३. निग्गंथेण य गामाणुगामं दूइज्जमाणेणं अण्णयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवइ-इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि- एवं एत्थ वि ते चेव अट्ट पालावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए॥ २५४. निग्गंथीए य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठाए अण्णयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तीसे णं एवं भवइ–इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स पालोएमि जाव तवोकम्म पडिवज्जामि ; तो पच्छा पवत्तिणीए अंतियं पालोएस्सामि जाव तवोकम्म पडिवज्जिस्सामि । सा य संपट्ठिया असंपत्ता, पवत्तिणी य अमुहा सिया। सा णं भंते ! कि पाराहिया ? विराहिया ? गोयमा ! पाराहिया, नो विराहिया। सा य संपट्टिया जहा निग्गंथस्स तिण्णि गमा भणिया एवं निग्गंथीए वि तिण्णि आलावगा भाणियव्वा जाव आराहिया, नो विराहिया ।। १. सं० पा०-एवं संपत्तेण वि चत्तारि आला- वगा भाणियव्वा जहेव असंपत्तेणं । २. विचार (ता, म); वितार (ब) ० । ३. पवित्तिणीए (अ, ता, ब, स)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003552
Book TitleAngsuttani Part 02 - Bhagavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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