________________
भगवई
१७०
२२५. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा मायी मिच्छदिट्टी' वीरियलद्धीए वे उव्वियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए° रायगिहे नगरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रुवाई जाणइ-पासइ ?
हंता जाणइ पासइ |
२२६. से भंते ! किं तहाभावं जाणइ पासइ ? ग्रण्णहाभावं जाणइ - पासइ ? गोयमा ! नो तहाभावं जाणइ पासइ, अण्णहाभावं जाणइ पासइ || २२७. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ - नो तहाभावं जाणइ पासइ ? अण्णाभावं
जाणइ पासइ ?
गोयमा ! • तस्स णं एवं भवइ - एवं खलु ग्रहं वाणारसीए नयरीए समोहए, समोहणित्ता रायगिहे नगरे रुवाइं जाणामि-पासामि । सेस दंसण - विवच्चासे भवति । से तेणट्टे गोयमा ! एवं वुच्चइ - नो तहाभावं जाणइ पासइ०, अण्णाभावं जाणइ-पासइ ||
२२८. अणगारे णं भंते! भावियप्पा मायी मिच्छदिट्ठी वीरियलद्धीए वे उव्वियलडीए विभंगनाणलद्धीए वाणारसि नगर, रायगिहं च नगरं, अंतरा एगं महं जणवयi समोहए, समोहणित्ता वाणारसि नगर रायगिहं च नगरं अंतरा' एवं महं जणवयग्गं जाणति - पासति ?
हंता जाणति - पासति ।
२२६. से भंते ! किं तहाभावं जाणइ पासइ ? अण्णाभावं जाणइ-पासइ ? गोयमा ! नो तहाभावं जाणइ-पासइ, अण्णहाभावं जाणइ पासइ ॥ २३०. से केणट्टेणं' "भंते ! एवं बुच्चइ - नो तहाभावं जाणइ-पासइ ? अण्णाभावं
जाणइ ०- पासइ ?
Jain Education International
गोयमा ! तस्स खलु एवं भवति - एस खलु वाणारसी नगरी, एस खलु रायगिहे नगरे, एस खलु अंतरा एगे महं जणवयग्गे, नो खलु एस महं वीरियलद्धी वेडव्विलद्धी विभंगनाणलद्धी इड्ढि जुती जसे बले वीरिए पुरिसक्कार -परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए 'सेस दंसण - विवच्चासे" भवति । से तेणट्टेणं' • गोयमा ! एवं वच्चइ - नो तहाभावं जाणइ पासइ, अण्णहाभावं जाणइ ० -
पासइ ||
१. सं० पा०- - मिच्छदिट्ठी जाव रायगिहे ।
२. सं० पा० - तं चैव जाव तस्स ।
३. सं० पा० - तेणट्टेणं जाव अण्णहाभावं । ४. अंतराय (क, ता, ब ) ।
५. जरणवयवग्गं (क, म, स, वृ); अत्र स्वीकृत : पाठ: समीचीन: प्रतिभाति । वृत्तिकृत:
सम्मुखवर्तिषु आदर्शेषु 'जरणवयवग्गं' इति पाठ: आसीत् तेन तथा व्याख्यातोसौ लभ्यते । ६. तं० च अंतरा (क, ता, ब, म) । ७. सं० पा० - केट्टेां जाव पासइ । ८. से से दंसणे विवच्चासे ( अ, क, ब, स ) । ६. सं० पा० - तेणट्टेणं जाव पासइ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org