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________________ छठें सतं ६१. कइविहा णं भंते कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पण्णत्ता ? जहेव' प्रोहिउद्देसयो । ६२. कइविहा णं भंते ! अणंतरोववन्ना कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पण्णत्ता ? जहेव अणंतरोववन्नाउद्देसो प्रोहियो तहेव ॥ ६३. कइविहा णं भंते ! परंपरोववन्ना कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्ना कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पण्णत्ता, भेदो चउक्कयो जाव वणस्सइकाइयत्ति ॥ ६४. परंपरोववन्नाकण्हलेस्सभवसिद्धियअपज्जत्तासुहमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए० ? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव प्रोहियो उद्देसनो जाव लोयचरिमंते त्ति । सव्वत्थ कण्हलेस्सेसु भवसिद्धिएसु उववाएयव्वो॥ ६५. कहि णं भंते ! परंपरोववन्नाकण्हलेस्सभवसिद्धियपज्जत्ताबादरपुढविकाइयाणं ठाणा पण्णत्ता ? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव प्रोहिओ उद्देसनो जाव तुल्लट्ठिइयत्ति। एवं एएणं अभिलावेणं कण्हलेस्सभवसिद्धियएगिदिएहि वि तहेव एक्कारसउद्दसगसंजुत्तं छटुं सतं ॥ ७-१२ सताई ६६. नीललेस्सभवसिद्धियएगिदिएसु सतं। एवं काउलेस्सभवसिद्धियएगिदिएहि वि सतं । जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि सयाणि एवं अभवसिद्धिएहि वि चत्तारि सयाणि भाणियव्वाणि, नवरं-चरिमअचरिमवज्जा नव उद्देसगा भाणियव्वा, सेसं तं चेव । एवं एयाइं बारस एगिदियसेढीसताई ।। ६७. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ ।। १. एवं जहेव (स)। १०२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003552
Book TitleAngsuttani Part 02 - Bhagavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1158
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size19 MB
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