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________________ प्रकाशकीय अनुयोगद्वारसूत्र जैन आगमों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इसमें प्रतिरादित विषय अन्य प्रागमों में प्ररूपित विषयों से बहत अंशों में भिन्न हैं, अतएव विशिष्ट जिज्ञास जनों के लिए इसका अध्ययन और मनन भी विशेष उपयोगी है। प्रमोद का विषय है कि प्रागमप्रकाशन की कड़ी में समिति इस ग्रागम को पाठकों के करकमलों में पहुँचा रही है। अागमों की विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना के देखन में माहित्यवाचस्पति विद्वट्टर उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. का बहुमूल्य सहयोग समिति को प्रारंभ से ही प्राप्त रहा है। सचाई यह है कि आपका महयोग भी आगमप्रकाशन की त्वरित गति का एक प्रधान कारण रहा है। साधुसम्मेलन पुना में सम्मिलित होने के लिए सुदूर विहार करते हुए भी नापने प्रस्तावनालेखन के हमारे अनुरोध को विस्मृत नहीं किया। शब्दों द्वारा प्रापका आभार व्यक्त करना संभव नहीं है। पर्ण विश्वास है, आगे भी इसी प्रकार आपका सहयोग प्राप्त होता रहेगा। प्रस्तुत पागम के अनुवादक-विवेचक श्रमणसंघ के उपाध्याय बिद्वान श्रेष्ठ प्रवक्ता श्री केवल मुनिजी म. का नाम कौन नहीं जानता ? अापकी ओर से समिति को जो महत्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, वह मुक्त कंठ से सराहनीय ही नहीं स्तुत्य भी है। साथ ही जिन विद्वानों के सहयोग ने अन्य के प्रकाशन, सम्पादन, संशोधन में सहयोग प्रदान किया है, उन सभी के प्रति हम आभारी हैं। अनुयोगद्वार प्रागमग्रन्थमाला का २८वां ग्रन्थ है। इसके पश्चात जीवाजीवाभिगम, छेदसूत्र और चन्द्र-सूर्य काशन शेष रहता है / कतिपय अनिवार्यतामों के कारण इनके प्रकाशन में कुछ विलम्ब होने को संभावना है, तथापि प्रयास यही है कि यथासंभव शीन बत्तीसी का प्रकाशन परा किया जा सके / कतिपय प्रागमों के पनाकार प्रकाशन की योजना भी समिति के समक्ष है। उसे भी कार्यान्वित करने का प्रयास चालू कर दिया गत खाचरौद अधिवेशन में निर्णय लिया गया है कि प्रागम बत्तीसी की उपलब्धि को अक्षण्ण रखा जाए और जो पागम समाप्त हो जाएँ उनका पुन: मुद्रण कराया जाए। इस निर्णय के अनुसार प्रागमप्रकाशन का कार्य भविष्य में भी निरन्तर चाल रहेगा और प्रागमप्रकाशन समिति स्थायी रूप ग्रहण करेगी। अतएव निवेदन है कि जिन सदस्य महानुभावों ने अपनी किश्तें अभी तक नहीं भेजी हैं, वे कृपया शीघ्र भेजकर इस पुनीत योजना के कार्यान्वयन में पुण्य के भागी बनें। रतनचंद मोदी सायरमल चौरडिया चांदमल बिनायकिया कार्यवाहक अध्यक्ष प्रधानमंत्री मंत्री आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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