________________ 490] [अनुयोगद्वारसूत्र 418 458 224 430 वम्गमूल वट्टसंठाणनाम वणातिगिच्छ वणस्सइकाइय वण्णगुणप्पमाण बपणणाम वत्थ वद्धमाण वयण वरुण ववहार वसहिदित 216 203 251 344 0 0 वसु 473 286 404 453 0 0 286 374 347 249 090 0 "osdogrs or 0 वेहम्मोवणीत सक्करप्पभा सचित्तदन्वखंध सचित्तदब्बोवक्कम सज्जग्गाम सद्वितंत सणकुमार सर्गिणवाइय सहसण्ह्यिा सत्थवाह सद्दणय समय समभिरुढ समवाय समुक्कित्तणया समोतार सम्ममिच्छादसणलद्धि सम्मुच्छिम सम्मुच्छिममणुस्स सयंभुरमण सरमइल सविया सव्वट्ठसिद्धय सब्बद्धा सव्ववेहम्म सव्वागाससेढी सहस्सार सखष्पमाण संगह संठाण संतपयपरूवणया संदमाणिय संहिता साइपारिणामिय सागरोवम सामाइय ती वाउकाइय वाउबभाम वाणमंतर वायु वाला वालुपमा पुढवी वासघर वासुदेव वासुपुज्ज विजय विण्ह विभागणिफण्ण विमल विमाणपत्थड वियाहपष्णत्ति विवद्धि विवागसुय विसेसदिट्ठ विस्स वडद वडढसावग वेमाणिय वेयणिज्जकम्म 462 o"o Nmo XxY 463 554 173 10 war00 WWWW 448 606 358 105 336 605 113 216 303 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org