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________________ 460] [अनुयोगद्वारसूत्र 4. क्षेत्र-किस क्षेत्र में सामायिक की उत्पत्ति हुई ? सामान्य से समयक्षेत्र में और विशेषापेक्षया पावापुरी के महासेनवनोद्यान में / 5. काल-किस काल में सामायिक की उत्पत्ति हुई ? वर्तमान काल की अपेक्षा वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन प्रथम पौरुषीकाल में उत्पत्ति हुई। 6. पुरुष-किस पुरुष से सामायिक निकली ? सर्वज्ञ पुरुषों ने सामायिक का प्रतिपादन किया है, अथवा व्यवहारनय से भरतक्षेत्र की अपेक्षा इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम भगवान् ऋषभदेव ने और वर्तमान में जिनशासन की अपेक्षा श्रमण भगवान् महावीर ने सामायिक का प्रतिपादन किया है। अथवा अर्थ की अपेक्षा सामायिक का प्रतिपादन भगवान महावीर ने और सूत्र की अपेक्षा गौतमादि गणधरों ने प्रतिपादन किया। 7. कारण किस कारण गौतमादि गणधरों ने भगवान् से सामायिक का श्रवण किया ? संयतिभाव की सिद्धि के लिये। 8. प्रत्यय-किस प्रत्यय (निमित्त) से भगवान ने सामायिक का उपदेश दिया और किम प्रत्यय से गणधरों ने उसका श्रवण किया? केवलज्ञानी होने से भगवान् ने सामायिकचारित्र का प्रतिपादन किया और भगवान् केवली हैं, इस प्रत्यय से भव्य जीवों ने श्रवण किया। 6. लक्षण सामायिक का लक्षण कहना / जैसे सम्यक्त्वसामायिक का लक्षण तत्त्वार्थ की श्रद्धा , श्रुतसामायिक का जीवादि तत्त्वों का परिज्ञान, चारित्रसामायिक का सर्वसावद्यविरति और देशचारित्रसामायिक का लक्षण विरत्यविरति (एकदेश विरति) है / 10. नय-नैगमादि नयों के मत से सामायिक कैसे होती है ? जैसे-व्यवहारनय से पाठ रूप सामायिक और तीन शब्दनयों से जीवादि वस्तु का ज्ञानरूप सामायिक होती है। 11. (नय) समवतार नैगमादि नयों का जहाँ समवतार–अन्तर्भाव संभवित हो, वहाँ उसका निर्देश करना / जैसे-कालिकश्रुत में नयों का समवतार नहीं होता है। किन्तु चरणकरणानुयोग प्रादि रूप चतुर्विध अनुयोगात्मक शास्त्रों की अपृथगावस्था में नयों का समवतार प्रत्येक सूत्र में होता है तथा इनकी पृथक अवस्था में नयों का समवतार नहीं है। वर्तमान में प्राचार्यों ने सूत्रों के पृथक-पृथक रूप से चार अनुयोग स्थापित कर दिये हैं। जिनमें नयों का समवतार इस समय विच्छिन्न हो गया है। 12. अनुमत-कौन नय किस सामायिक को मोक्षमार्ग रूप मानता है ? जैसे नैगम, संग्रह और व्यवहारनय तप-संयम रूप चारित्रसामायिक को, निर्ग्रन्थप्रवचन रूप श्रुतसामायिक को और तत्त्वश्रद्धानरूप सम्यक्त्वसामायिक को, इन तीनों सामायिकों को मोक्षमार्ग मानते हैं / सर्वसंवर रूप चारित्र के अनन्तर ही मोक्ष की प्राप्ति होने से ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत, ये चारों नय संयम रूप चारित्रसामायिक को ही मोक्षमार्ग रूप मानते हैं। 13. किम् - सामायिक क्या है ? द्रव्याथिकनय के मत से सामायिक जीवद्रव्य है और पर्यायाथिक नय के मत से सामायिक जीव का गुण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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