________________ क्षपणा निरूपण [579 प्र.] भगवन् ! अप्रशस्तनोग्रागमभाव-पाय किसे कहते हैं ? [579 उ.] अायुष्मन् ! अप्रशस्तनोग्रागमभाव-पाय के चार प्रकार हैं। यथा---.१. क्रोधप्राय, 2. मान-पाय. 3. माया-पाय और 4. लोभ-पाय / यही अप्रशस्तभाव-प्राय है / इस प्रकार से नोप्रागमभाव-प्राय और भाव-माय एवं ग्राय की वक्तव्यता का वर्णन जानना विवेचन--भाव-प्राय का वर्णन सुगम है / विशेष इतना है कि ज्ञान, दर्शन और चारित्र की प्राय मोक्षप्राप्ति का उपाय होने के साथ आत्मिक गुण रूप होने से प्रशस्त है और क्रोधादि की प्राय अप्रशस्त इसलिये है कि वे अात्मा की वैभाविक परिणति एवं संसार के कारण हैं। इनकी प्राप्ति से जीव संसार में परिभ्रमण करता है और संसार में परिभ्रमण करना जीव के लिए अनिष्ट है। क्षपणानिरूपण 580. से कि तं झवणा ? झवणा चविहा पण्णत्ता। तं जहा---नामज्शवणा ठवणज्झवणा दवझवणा भावज्झवणा। [580 प्र.] भगवन् ! क्षपणा का क्या स्वरूप है ? [580 उ. प्रायूष्मन ! क्षपणा के भी चार प्रकार जानना चाहिये। यथा-१. नामक्षपणा 2. स्थापनाक्षपणा 3. द्रव्यक्षपणा 4. भावक्षपणा / विवेचन-कर्मनिर्जरा, क्षय या अपचय को क्षपणा कहते हैं / आगे नाम आदि चारों प्रकार की क्षपणा का वर्णन करते हैं। नामस्थापनाक्षपणा 581. नाम-ठवणाओ पुन्वभणियाओ। {581] नाम और स्थापनाक्षपणा का वर्णन पूर्ववत् (नाम और स्थापना अावश्यक के अनुरूप) जानना चाहिये। द्रव्यक्षपणा 582. से कि त दन्वज्शवणा? दवज्झवणा दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-आगमतो य नोआगमतो य / [582 प्र.] भगवन् ! द्रव्यक्षपणा का क्या स्वरूप है ? [582 उ.] आयुष्मन् ! द्रव्यक्षपणा दो प्रकार की है। यथा—१. आगम से और 2. नोग्रागम से। 583. से कितं आगमतो दग्वज्झवणा? आगमतो दग्वज्झवणा जस्स णं झवणेति पदं सिक्खियं ठितं जितं मितं परिजिय, सेसं जहा दव्यज्झयणे तहा भाणियन्व, जाव से तं प्रागमतो दग्वझवणा / [583 प्र.] भगवन् ! आगमद्रव्यक्षपणा किसे कहते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org