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________________ 442] [अनुयोगद्वारसूत्र [549 प्र.] भगवन् ! द्रव्य-प्रक्षीण का क्या स्वरूप है ? [549 उ.] अायुष्मन् ! द्रव्य-प्रक्षीण के दो प्रकार हैं / यथा-१. प्रागम से, 2. नोग्रागम से। 550. से कि तं प्रागमतो दवझीणे? आगमतो दग्वज्झीणे जस्स गं अज्झोणे त्ति पदं सिक्खितं ठितं जितं मितं परिजितं तं चेव जहा दव्वज्झयणे तहा भाणियन्वं, जाव से तं आगमतो दन्वज्झीणे / [550 प्र. भगवन् ! आगमद्रव्य-प्रक्षीण का क्या स्वरूप है ? [550 उ.] अायुष्मन् ! जिसने अक्षीण इस पद को सीख लिया है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है इत्यादि जैसा द्रव्य-अध्ययन के प्रसंग में कहा है, वैसा ही यहां भी समझना चाहिये, यावत् वह पागम से द्रव्य-अक्षीण है। 551. से कि तं नोआगमतो दन्यज्झीणे ? नोबागमतो दव्वज्झीणे तिविहे पण्णत्ते / तं जहा--जाणयसरीरदव्वज्झीणे भवियसरीरदव्वज्झीणे जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दव्वज्झोणे / [551 प्र.] भगवन् ! नोपागम से द्रव्य-अक्षीण का क्या स्वरूप है ? [551 उ.] आयुष्मन् ! नोप्रागमद्रव्य-अक्षीण के तीन प्रकार हैं। यथा- 1. ज्ञायकशरीरद्रव्य-अक्षीण 2. भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण 3. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण / 552. से कि तं जाणयसरीरदब्वज्झीणे ? जाणयसरीरदब्वज्सीणे अज्ञीणपयस्थाहिकारजाणयस्स जं सरीरयं बवगय-चुत-चइत-चत्तदेह जहा दबज्झयणे तहा भाणियन्वं, जाव से तं जाणयसरीरदवज्झोणे / [552 प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरद्रव्य-प्रक्षीण किसे कहते हैं ? [552 उ.] आयुष्मन् ! अक्षीण पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का व्यपगत, च्युत, च्यवित, त्यक्तदेह आदि जैसा द्रव्य-अध्ययन के संदर्भ में वर्णन किया गया है, उसी प्रकार यहाँ भी करना चाहिये यावत् यही ज्ञायकशरीरद्रव्य-अक्षीण का स्वरूप है। 553. से कि तं भवियसरीरदव्वज्झोणे ? भवियसरीरदविज्झीणे जे जोवे जोणीजम्मणनिक्खंते जहा दध्वजायणे, जाव से तं भवियसरीरदव्वज्झोणे। [553 प्र.] भगवन् ! भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण किसे कहते हैं ? [553 उ.] आयुष्मन् ! समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि से निकलकर उत्पन्न हुआ आदि पूर्वोक्त भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन के जैसा इस भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण का वर्णन जानना चाहिये, यावत् यह भव्यशरीरद्रव्य-प्रक्षीण की वक्तव्यता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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