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________________ 426] [अनुपोगटारसूत्र सिद्धान्त है। इस तरह जिस वक्तव्यता में परसिद्धान्त को प्ररूपणा की जाती है, वह परसमयवक्तव्यता है। स्वसमय-परसमयवक्तव्यता 524. से कि तं ससमयपरसमथवत्तव्वया? ससमयपरसमयवत्तव्यया जत्थ णं ससमए परसमए आधविज्जइ जाव उवदंसिज्जइ / से तं ससमयपरसमययत्तत्वया। [524 प्र.] भगवन्! स्वसमय-परसमयवक्तव्यता का क्या स्वरूप है ? [524 उ.] आयुष्मन् ! स्वसमय-परसमयवक्तव्यता इस प्रकार है-जिस वक्तव्यता में स्वसिद्धान्त और परसिद्धान्त दोनों का कथन यावत् उपदर्शन किया जाता है, उसे स्वसमय-परसमयवक्तव्यता कहते हैं। विवेचना--जो व्याख्या स्वसमय और परसमय उभय रूप संभव हो वह स्वसमयपरसमयवक्तव्यता कहलाती है / जैसे प्रागारमावसंता वा, प्रारण्णा वावि पव्वया। इमं दरिसणमावन्ना, सव्वदुक्खा विमुच्चई / / अर्थात् जो व्यक्ति घर में रहते हैं - गृहस्थ हैं, अथवा वनवासी हैं, अथवा प्रवजित (शाक्यादि) हैं, वे यदि हमारे सिद्धान्त को स्वीकार, धारण, ग्रहण कर लेते हैं तो सभी (शारीरिक, मानसिक) दुखों से सर्वथा विमुक्त हो जाते हैं / इस कथन की उभयमुखी वृत्ति होने से जैन, बौद्ध, सांख्य प्रादि जो कोई भी इसका अर्थ करेगा वह अपने मतानुसार होने से स्वसमयवक्तव्यता रूप और इतर के लिये परसमयवक्तव्यता रूप है / इसीलिये इसे स्व-परसमयों की वक्तव्यता कहा है / वक्तव्यता के विषय में नयष्टियां 525. [1] इयाणि को णओ कं वत्तन्वयमिच्छति ? तत्थ णेगम-संग्रह-ववहारातिविहं वत्तव्वयं हच्छंति। तं जहा ससमयवत्तव्वयं परसमयवत्तव्वयं ससमयपरसमयक्त्तव्वयं / [525-1 प्र.] भगवन् ! (इन तीनों वक्तव्यताओं में से) कौन नय किस वक्तव्यता को स्वीकार करता है ? [525-1 उ.] आयुष्मन् ! नेगम, संग्रह और व्यवहार नय तीनों प्रकार की वक्तव्यता को स्वीकार करते हैं। [2] उज्जुसुओ दुविहं वत्तव्वयं इच्छति। तं जहा-ससमयवत्तव्ययं परसमयवत्तव्वयं / तत्थ णं जा सा ससमयवत्तव्वया सा ससमयं पविट्ठा, जा सा परसमयवत्तव्दया सा परसमयं पविट्ठा, तम्हा दुविहा वत्तम्बया, णस्थि ति विहा वत्तम्वया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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