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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [419 रूवूणो उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होइ, अहवा जहन्नयं असंखेज्जासंखेज्जयं रूवणं उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होति / [512 प्र.] भगवन् ! उत्कृष्ट युक्तासंख्यात कितने प्रमाण का होता है ? [512 उ.] अायुष्मन् ! जघन्य युक्तासंख्यात राशि को प्रावलिका से (जघन्य युक्तासंख्यात से) परस्पर अभ्यास रूप गुणा करने से प्राप्त प्रमाण में से एक न्यून उत्कृष्ट युक्तासंख्यात है / अथवा जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि प्रमाण में से एक कम करने से उत्कृष्ट युक्तासंख्यात होता है। विवेचन-प्रस्तुत दो सूत्रों में युक्तासंख्यात के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेदों का स्वरूप बतलाया है। प्राशय सुगम है / यहाँ इतना ज्ञातव्य है कि प्रावलिका के असंख्यात समय जघन्य युक्तासंख्यात में जितने सर्षप होते हैं, उतने समय-प्रमाण हैं / अर्थात् प्रावलिका जघन्य युक्तासंख्यात के तुल्य समयप्रमाण वाली जानना चाहिये / असंख्यातासंख्यात का निरूपण 513. जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होइ ? जहन्नएणं जुत्तासंखेज्जएणं आवलिया गुणिया अण्णमण्णभासो पडिपुण्णो जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ, अहवा उक्कोसए जुत्तासंखेज्जए रूवं पक्खित्तं जहण्णय असंखेज्जासंखेज्जयं होति, तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाब उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं ण पावति / [513 प्र.] भगवन् ! जघन्य असंख्यातासंख्यात का क्या प्रमाण है ? [513 उ.] आयुष्मन् ! जघन्य युक्तासंख्यात के साथ प्रावलिका की राशि का परस्पर अभ्यास करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य असंख्यातासंख्यात है। अथवा उत्कृष्ट युक्तासंख्यात में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य असंख्यातासंख्यात होता है। तत्पश्चात् मध्यम स्थान होते हैं और वे स्थान उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात प्राप्त होने से पूर्व तक जानना चाहिये। 514. उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होति ? जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं जहण्णयअसंखेज्जासंखेज्जयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णमासो रूवणो उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ, अहवा जहण्णयं परित्तागतयं रूवणं उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होति / [514 प्र. भगवन् ! उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रमाण कितना है ? [514 उ.] आयुष्मन् ! जघन्य असंख्यातासंख्यात मात्र राशि का उसी जवन्य असंख्यातासंख्यात राशि से अन्योन्य (परस्पर एक दूसरे से) अभ्यास-गुणा करने से प्राप्त संख्या में से एक न्यून करने पर प्राप्त संख्या उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात है। अथवा एक न्युन जघन्य परीतानन्त उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रमाण है। विवेचन--प्रस्तुत दो सूत्रों में जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातों का स्वरूप बताया है / जिनका आशय स्पष्ट और सुगम है। किन्तु अन्य कतिपय आचार्य उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात की अन्य रूप से प्ररूपणा करते हैं। उनका मंतव्य इस प्रकार है-- . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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