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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [415 पल्य कहते हैं / प्रतिशलाकापल्य के एक-एक वार भरे जाने और खाली हो जाने पर एक-एक सरसों का दाना महाशलाका पल्य में डाला जाता है, जिससे यह ज्ञात होता है कि इतनी बार प्रतिशलाकापल्य भरा गया और खाली किया गया है। उत्कृष्ट संख्यात का प्रमाण बताने में इन चारों पल्यों के उपयोग करने की विधि इस प्रकार है-- पल्योपयोग विधि - सबसे पहला जो अनवस्थित पल्य है, इसके पहले प्रकार (मूल अनवस्थितपल्प) को सरसों के दानों से शिखापर्यन्त ठांस-ठांस कर परिपूर्ण भर देने के बाद उसमें से एक-एक सरसों का दाना जम्बूद्वीप आदि प्रत्येक द्वीप-समुद्र में डालें। इस प्रकार सरसों के दाने डालने पर जिस द्वीप या समुद्र में यह मूल अनवस्थितपल्य खाली हो जाये तब मूलस्थान-जम्बूद्वीप से लेकर उतने लंबे-चौड़े क्षेत्रप्रमाण और ऊंचाई में मूल अनवस्थितपल्य जितना दुसरा उत्तर अनवस्थित पल्य बनायें और इसको भी पूर्ववत् सरसों के दानों से शिखापर्यन्त परिपूर्ण भरें। इस प्रथम उत्तर अनवस्थितपल्य में से सरसों का एक-एक दाना मूल अनवस्थितपल्य के सरसों के दाने जिस द्वीप या समुद्र में डालने पर समाप्त हुए थे, पुनः उसके आगे के द्वीप-समुद्र में क्रमश: डालें। इस प्रकार एक-एक दाना डालने से जब वह पल्य खाली हो जाये तब एक दाना शलाकापल्य में डाला जाये / / इस प्रकार जब-जब उत्तरोत्तर विशाल अनवस्थितपल्य खाली होता जाये तब-तब एक-एक दाना शलाकापल्य में डालते जाना चाहिये। इस प्रकार करते-करते जब शलाकापल्य पूर्ण भर जाये तब जिस द्वीप या समुद्र में अनवस्थितपल्य खाली हुआ हो, उस द्वीप या समुद्र के बराबर क्षेत्र के अनवस्थितपल्य की कल्पना करके उसे सरसो से भरें / उसको खाली करने पर साक्षीभूत सरसों का दाना शलाकापल्य में ममाते-रखे जाने की स्थिति में न होने के कारण उसे जैसाका तैसा भरा रखना चाहिये और उस शलाकापल्य के दानों को लेकर एक-एक द्वीप-समुद्र में एक-एक सरसों का दाना डालें। इस प्रकार जब शलाकापल्य खाली हो तब एक सरसों का दाना प्रतिशलाकापल्य में डालें। इस समय अनवस्थितपल्य भराहग्रा, शलाकापल्य खाली और प्रतिशलाकापल्य में एक सरसों का दाना होता है। तदनन्तर अनवस्थितपल्य के दानों में से आगे के द्वीप, समुद्र में एक-एक सरसों का दाना डालें और जब खाली हो तब एक सरसों का दाना शलाकापल्य में डालें और उस द्वीप या समुद्र जितने लंबे-चौड़े नये अनवस्थितपल्य की कल्पना करके सरसों से भरें और पुनः एक-एक सरसों का दाना एक-एक द्वीप और समुद्र में डालें। इस प्रकार पुनः दूसरी बार शलाकापल्य को पूरा भरें और जिस द्वीप या समुद्र में अनवस्थितपल्य खाली हुमा हो उस द्वीप या समुद्र के बराबर के अनबस्थितपल्य की कल्पना करें और उसे सरसों से भरें। ___ ऐसा करने पर अनवस्थित और शलाका पल्य भरे होंगे और प्रतिगलाकापत्य में एक सरसों का दाना होगा। ____ अब पुन: शलाकापल्य को लेकर वहाँ से आगे के द्वीप-समद्र में एक-एक दाना डालकर उसे खाली करें और खाली होने पर एक सरसों का दाना प्रतिशलाकापल्य में डालें। ऐसा होने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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