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________________ 412] [अनुयोगहारसूत्र अष्टविध अनन्त 1 परीतानन्त 2 युक्तानन्त 3 अनन्तानन्त 1 जघन्य परीतानन्त 4 जघन्य युक्तानन्त 7 जघन्य अनन्तानन्त 2 मध्यम परीतानन्त 5 मध्यम युक्तानन्त 8 मध्यम अनन्तानन्त 3 उत्कृष्ट परीतानन्त 6 उत्कृष्ट युक्तानन्त असंख्यात प्रादि के भेदों का विस्तार से वर्णन करने के लिये सर्वप्रथम संख्यान की प्ररूपणा की जाती है। संख्यातनिरूपण 507. जहणयं संखेज्जयं केतियं होइ ? दोस्वाई, तेण परं अजहण्जमणुक्कोसयाई ठाणाइं जाव उक्कोसयं संखेज्जयं ण पावइ / [507 प्र. भगवन् ! जघन्य संख्यात कितने प्रमाण में होता है ? (अर्थात् किस संख्या से लेकर किस संख्या पर्यन्त जघन्य संख्यात माना जाता है ?) [507 उ.] आयुष्मन् ! दो रूप प्रमाण जघन्य संख्यात है, उसके पश्चात् (तीन, चार प्रादि) यावत् उत्कृष्ट संख्यात का स्थान प्राप्त न होने तक मध्यम संख्यात जानना चाहिये। 508. उक्कोसयं संखेज्जयं केत्तियं होइ ? उक्कोसयस्स संखेज्जयस्स परूवणं करिस्सामि-से जहानामए पल्ले सिया, एगं जोयणसय. सहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिणि जोयणसयसहस्साई सोलस य सहस्साई दोणि य सत्तावीसे जोयणसते तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसतं तेरस य अंगुलाई अखंगुलयं च किनिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते / से णं पल्ले सिद्धत्थयाणं भरिए। ततो णं तेहिं सिद्धत्थरहिं दीव-समुदाणं उद्धारे घेप्पति, एगे दीवे एगे समुद्दे 2 एवं पविखप्पमाणेहि 2 जावइया णं दीव-समुद्दा तेहि सिद्धत्थरहि अप्फुण्णा एस णं एवतिए खेत्ते पल्ले आइछे / से पं पल्ले सिद्धत्थयाणं भरिए / ततो गं तेहि सिद्धथएहिं दीव-समुदाणं उद्धारे घेप्पति एगे दीवे एगे समुद्दे 2 एवं पक्खिप्पमाणेहि 2 जावइया गं दीव-समुद्दा तेहि सिद्धत्थरहि अप्फुन्ना एस णं एवतिए खेत्ते पल्ले पढमा सलागा, एवढ्याणं सलागाणं असंलप्पा लोमा भरिया तहा वि उक्कोसयं संखेज्जयं ण पावइ / जहा को दिळंतो? से जहाणामए मंचे सिया आमलगाणं भरिते, तत्थ णं एगे आमलए पक्खित्ते से माते, अण्णे वि पक्खित्ते से वि माते, अन्ने वि पविखत्ते से वि माते, एवं पक्खिप्पमाणे 2 होही से आमलए जम्मि पक्खित्ते से मंचए भरिज्जिहिइ जे वि तत्थ आमलए न माहिति / [508 प्र.] भगवन् ! उत्कृष्ट संख्यात कितने प्रमाण में होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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