________________ 398] [अनुयोगद्वारसूत्र का अथवा तदुभय (एक जोव, एक अजोव दोनों) का अथवा तदुभयों (अनेक जीवों-अजोवों दोनों) का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते हैं। 479, से कि तं ठपणासंखा? ठवणासंखा जणं कट्टकम्मे वा पोत्थकम्मे वा चित्तकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंधिकम्मे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा बराडए वा एक्को वा अणेगा वा सम्भावठवणाए वा असबभावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठवेज्जति / से तं ठवणासंखा। [479 प्र.] भगवन् ! स्थापनासंख्या का क्या स्वरूप है ? [479 उ.] अायुष्मन् ! जिस काष्ठकर्म में, पुस्तकर्म में या चित्रकर्म में या लेप्यकर्म में अथवा प्रन्थिकर्म में अथवा बेढित में अथवा पूरित में अथवा संघातिम में अथवा अक्ष में अथवा बराटक में अथवा एक या अनेक में सद्भुतस्थापना या असद्भुतस्थापना द्वारा संख्या इस प्रकार का स्थापन (प्रारोप) कर लिया जाता है, वह स्थापनासंख्या है। 480. नाम -ठवणाणं को पतिविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तिरिया वा होज्जा आवकहिया वा / [480 प्र.] भगवन् ! नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ? [480 उ.] प्रायुष्मन् ! नाम यावत्कथिक (वस्तु के रहने पर्यन्त) होता है लेकिन स्थापना इत्वरिक (स्वल्पकालिक) भी होती है और यावत्कर्थिक भी होती है / विवेचन-नाम और स्थापना संख्या का विशेष स्पष्टीकरण नाम-आवश्यक एवं स्थापना-यावश्यक के अनुसार समझ लेना चाहिये / नाम और स्थापना आवश्यक सम्बन्धी वर्णन पूर्व में विस्तार से किया जा चुका है। द्रव्यसंख्या 481. से कि तं दध्वसंखा? दवसंखा दुविहा पं० / तं-प्रागमओ य नोआगमतो य / [481 प्र.] भगवन् ! द्रव्यशंख का क्या तात्पर्य है ? [481 उ.] आयुष्मन् ! द्रव्यशंख दो प्रकार का कहा है, जैसे—१. आगमद्रव्यशंख, 2. नोग्रागमद्रव्यशंख / 482. से कितं आगमओ दव्वसंखा? दवसंखा जस्स गं संखा ति पदं सिक्खितं ठियं जिपं मियं परिजियं जाव कंगिराह (कंठोट्ट) विष्यमुक्कं (गुरुवायणोवगयं), से गं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए, कम्हा? अणुवओगो दवमिति कटु / [482 प्र.] भगवन् ! प्रागमद्रव्यशंख का क्या स्वरूप है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org