________________ 386] [अनुयोगद्वारसूत्र नयप्रमाणतिरूपण 473. से किं तं नयप्पमाणे ? नयप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते / तं जहा–पत्थय दिट्टतेणं वसहिदिट्ठतेणं पएसदिट्ठतेणं / [473 प्र.भगवन् ! नयप्रमाण का स्वरूप क्या है ? 473 उ.] आयुष्मन् ! नयप्रमाण का स्वरूप तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है / जैसे कि..--१. प्रस्थक के दृष्टान्त द्वारा, 2. वसति के दृष्टान्त द्वारा और. 3. प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा / विवेचन–प्रस्तुत में तीन दृष्टान्तों द्वारा नयप्रमाण के स्वरूप का कथन किया है। प्रत्येक जीवादिक पदार्थ अनन्त धर्मात्मक हैं / उन अनन्त धर्मों में विवक्षित धर्म को मुख्य एवं अन्य धर्मों को गौण करके वस्तुप्रतिपादक वक्ता का जो अभिप्राय होता है, वह नयप्रमाण है / यद्यपि नयप्रमाण गुणप्रमाण के अंतर्गत ही है और नैगम, संग्रह आदि के भेद से बहुत से नय हैं, तथापि स्थान-स्थान पर अत्युपयोगी और गहन विषय वाले होने से यहाँ प्रस्थक आदि दृष्टान्तत्रय से नयप्रमाण का वर्णन किया है। प्रस्थकदृष्टान्त द्वारा नयनिरूपण 474. से किं तं पत्थगदिळंतेणं ? पत्थगदिद्रुतेणं से जहानामए केइ पुरिसे परसुगहाय अडविहुत्ते गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता बदेज्जा-कत्थ भवं गच्छसि ? अविसुद्धो नेगमो भणति-पत्थगस्स गच्छामि / तं च केइ छिदभाणं पासित्ता वइज्जा–कि भवं छिदसि ? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थयं छिदामि / तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता बदेज्जा–कि भवं तच्छेसि ? विसुद्धतरानो गेगमो भणति–पत्थयं तच्छेमि। तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वदेज्जा-कि भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ णेगमोभणति पत्थयं उक्किरामि / तं च केइ [वि] लिहमाणं पासेत्ता वदेज्जा—कि भवं [वि] लिहसि ? विसुद्धतराओ गमो भणतिपत्थयं [वि] लिहामि / एवं विसुद्धतरागस्स णेगमस्थ नामाउडितओ पत्थओ। एवमेव ववहारस्स वि। संगहस्स चितो मिओ मिज्जसमारूढो पत्थओ। उजुसुयस्स पत्थयो वि पत्थओ मिज्जं पि से पत्थओ। तिण्हं सद्दणयाणं पत्थयाहिगारजाणओ पत्थओ जस्स वा वसेणं पत्थओ निष्फज्जइ / से तं पत्थयदिळंतेणं। [474 प्र.] भगवन् ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? [474 उ.] आयुष्मन् ! जैसे कोई पुरुष परशु (कुल्हाड़ी) लेकर बन की ओर जाता है ! उसे देखकर किसी ने पूछा-आप कहाँ जा रहे हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org