SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाणाधिकार निरुपण] भवनपति देवों की स्थिति 384. असुरकमाराणं भंते ! देवाणं केवतिकालं ठिती पं०? गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं / असुरकुमारीणं भंते ! देवीणं केवतिकालं ठिती पं० ? गो० ! जहन्नेणं वसवाससहस्साई, उक्कोसेणं अद्धपंचमाई पलिओवमाई / _ [384.1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों की कितने काल की स्थिति प्रतिपादन की गई है ? [384-1 उ.] गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक सागरोपम प्रमाण है। [प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवियों की स्थिति कितने काल की कही है ? [उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट साढे चार पल्योपम की कही है। [2] नागकुमाराणं जाय गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं देसूणाई दोणि पलिओवमाई। नागकुमारीणं जाव गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं देसूर्ण पलिओवमं / [3] एवं जहा गागकुमाराणं देवाणं देवीण य तहा जाव थणियकुमाराणं देवाणं देवीण य भाणियग्वं / [384-2, 3 प्र.] भगवन् ! नागकुमार देवों की स्थिति कितनी है। [384-2, 3 उ.] गौतम ! जघन्य दरा हजार वर्ष की और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की है। [प्र.] भगवन् ! नागकुमारदेवियों की स्थिति कितने काल प्रमाण है ? [उ.] गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन एक पल्योपम की होती है एवं जितनी नागकुमार देव, देवियों की स्थिति कही गई है, उतनी ही शेष-सुपर्णकुमार से स्तनितकुमार तक के देवों और देवियों की स्थिति जानना चाहिये। विवेचन-उपर्युक्त प्रश्नोत्तरों में चार देवनिकायों में से पहले भवनपति देवनिकाय के असुरकुमार आदि स्तनितकुमार पर्यन्त सभी दस भेदों के देव और देवियों की आयुस्थिति का प्रमाण बतलाया है। इन सभी देवों और देवियों की सामान्य से जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है किन्तु उत्कृष्ट स्थिति में अन्तर है, जो मूल पाठ से स्पष्ट है। पंच स्थावरों की स्थिति 385. [1] पुढवीकाइयाणं भंते ! केवतिकालं ठिती पन्नता? गो० ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्सा / सुहुमपुढविकाइयाणं श्रोहियाणं अपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाण य तिरह वि पुच्छा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy