________________ नामाधिकार निरूपण [223 [303 प्र.] भगवन् ! कर्मनाम का क्या स्वरूप है ? __ [303 उ.] आयुष्मन् ! दौष्यिक, सौत्रिक, काासिक, सूबवैचारिक, भांडवैचारिक, कौलालिक, ये सब कर्मनिमित्तज नाम हैं। विवेचन--सूत्र में कर्म तद्धितज नाम के उदाहरण दिये हैं / कर्म शब्द का प्रयोग यहाँ पण्य– बेचने योग्य पदार्थ अर्थ में हुआ है। यथा-दुष्यं पण्यमस्येति दौष्यिक:--वस्त्र को बेचने वाला / इसी प्रकार सूत बेचने वाला सौत्रिक आदि का प्राशय जानना चाहिये / ये दौष्यिक आदि शब्द 'तदस्य पण्यं' सूत्र से ठक् प्रत्यय होकर 'ठस्येकः' ठ के स्थान पर इक् और आदि में वृद्धि होने से बने हैं। पाठभेद-प्रस्तुत सूत्र में किन्हीं-किन्हीं प्रतियों में पाठभेद भी पाया जाता है, जो इस प्रकार है--- 'तणहारए कट्ठहारए पत्तहारए दोसिए सोत्तिए कप्पासिए भंडवेपालिए कोलालिए.......'' विशिष्ट शब्दों का अर्थ-दोस्सिए-दौष्यिक-वस्त्र का व्यापारी, सोत्तिए सौत्रिक--- सूत का व्यापारी, कपासिए-कासिक-कपास का व्यवसायी, सुत्तवेतालिए-सूत्रवैचारिक-- सूत बेचने वाला, भंडवेतालिए-भांडवैचारिक-बर्तन बेचने वाला, कोलालिए-कौलालिकमिट्टी के पात्र बेचने वाला। शिल्पनाम 304. से कि तं सिघ्पनामे ? सिप्पनामे तुण्णिए तंतुवाइए पट्टकारिए उवट्टिए वरुटिए भुजकारिए कटुकारिए छत्तकारिए बज्मकारिए पोत्यकारिए चित्तकारिए दंतकारिए लेप्पकारिए सेलकारिए कोट्टिमकारिए। से तं सिप्पनामे। [304 प्र.] भगवन् ! शिल्पनाम का क्या स्वरूप है ? [304 उ.] आयुष्मन् ! तौनिक तान्तुवायिक, पाटुकारिक, प्रौढत्तिक वारु टिक मौजकारिक, काष्ठकारिक छात्रकारिक वाह्यकारिक पौस्तकारिक चैत्रकारिक दान्तकारिक लैप्यकारिक शैलकारिक कौट्टिमकारिक / यह शिल्पनाम हैं। विवेचन-सत्र में शिल्प-कला के आधार से स्थापित कुछ नामों का संकेत किया है। इसमें 'शिल्पम्' सूत्र से तद्धित प्रत्यय ठक् हुआ है और ठक् को इक् आदि होने का विधान पूर्ववत् जानना चाहिये। सूत्रगत कतिपय शब्दों के अर्थ-तुण्णिए–तौन्निक-रफू करने वाला शिल्पी, तंतुवाए--- तान्तुवायिक-जुलाहा, पट्टकारिए-पट्ट बनाने वाला शिल्पी, उव्वट्टिए-ौवृत्तिक—पीठी आदि से शरीर के मैल को दूर करने वाला शिल्पी नाई, वरुटिए--वारुटिक-एक शिल्प विशेष जीवी, मुजकारिए----मौञ्जकारिक ----मंज की रस्सी बनाने वाला शिल्पी, कटुकारिए---काष्ठकारिकबढ़ई, छत्तकारिए -छात्रकारिक--छाता बनाने वाला शिल्पी, बज्झकारिए बाह्यकारिक-रथ प्रादि बनाने वाला शिल्पी, पोत्थकारिए--पौस्तकारिक--जिल्दसाज, चित्तकारिए–चैत्रकारिक-~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org