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________________ नामाधिकार निरूपण (221 इसमें अन्तिम पद प्रधान होता है और प्रथम पद प्रथमा विभक्ति से भिन्न किसी दूसरी विभक्ति का होता है। इसके प्रथम पद में द्वितीया से लेकर सप्तमी पर्यन्त छह विभक्तियों के रहने के कारण इसके छह भेद होते हैं। सूत्रोक्त उदाहरण सप्तमीविभक्तिपरक हैं। तत्पुरुषसमास के और भी उपभेद हैं, जिनमें नन्, अलुक और उपपद प्रधान हैं। नन् तत्पुरुाा में प्रभाव, निषेध अर्थसूचक अ, अन्, न उपसर्ग शब्द के पूर्व में लगाकर समस्त पद बनाया जाता है / जैसे अनाथ, अनन्त, असत्य / इसमें व्यंजन से पहले अऔर स्वर से पहले अन् लगता है / अलुक् समास में पूर्वपद की विभक्ति का लोप नहीं होता है / जैसे अन्तेवासी, खेचर प्रादि / उपपदसमास में दूसरा पद ऐसा कृदन्त होता है कि असंबद्ध रहने पर जिसका कोई प्रयोग या उपयोग नहीं होता। जैसे—कभ-कार, चर्मकार इत्यादि / अव्ययीभावसमास 300. से कि तं अव्वईभावे समासे ? अव्वईभावे समासे अगुगामं अणुणदीयं अणुफरिहं अणुचरियं / से तं अन्वईभावे समासे / [300 प्र.] भगवन् ! अव्ययीभावसमास का स्वरूप क्या है ? [300 उ.] आयुष्मन् ! अव्ययीभावसमास इस प्रकार जानना चाहिये—ग्राम के समीप-.. 'अनुग्राम', नदी के समीप --'अनुनदिकम्', इसी प्रकार अनुस्पर्शम्, अनुचरितम् प्रादि अव्ययीभावसमास के उदाहरण हैं। विवेचन--अव्ययीभावसमास में पूर्व पद अव्यय रूप और उत्तर पद नाम होता है तथा अन्त में सदा नपंसलिंग और प्रथमा विभक्ति का एकवचन रहता है। यह उदाहरणों से स्पष्ट है। एकशेषसमास 301. से कि तं एगसेसे समासे ? एगसेसे समासे जहा एगो पुरिसो तहा बहबे पुरिसा जहा बहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो, जहा एगो करिसावणो तहा बहवे करिसावणा जहा बहवे करिसावणा तहा एगो करिसावणो, जहा एगो साली तहा बहवे सालिणो जहा बहबे सालिणो तहा एगो साली / से तं एगसेसे समासे / से तं सामासिए / [301 प्र.| भगवन् ! एकशेषसमास किसे कहते हैं ? [301 उ.] आयुष्मन् ! जिसमें एक शेष रहे, वह एकशेषसमास है। वह इस प्रकार जैसा एक पुरुष वैसे अनेक पुरुष और जैसे अनेक पुरुष वैसा एक पुरुष, जैसा एक कार्षापण (स्वर्ण मुद्रा) वैसे अनेक कार्षापण और जैसे अनेक कार्षापण वैसा एक कार्षापण, जैसे एक शालि वैसे अनेक शालि और जैसे अनेक शालि वैसा एक शालि इत्यादि एकशेषसमास के उदाहरण हैं। इस प्रकार से सामासिकभावप्रमाणनाम का प्राशय जानना चाहिये। विवेचन-एकशेषसमास विषयक स्पष्टीकरण इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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