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________________ 216] [अनुयोगद्वारसूत्र [289 प्र.] भगवन् ! गणनाम का क्या स्वरूप है ? [289 उ.] अायुष्मन् ! गण के आधार से स्थापित नाम को गणनाम कहते हैं / जैसे--मल्ल, मल्लदत्त, मल्लधर्म, मल्लशर्म, मल्लदेव, मल्लदास, मल्लसेन, मल्ल रक्षित प्रादि गण-स्थापनानिष्पन्ननाम हैं। विवेचन--सूत्र में गणनाम का स्वरूप स्पष्ट किया है / प्रायुधजीवियों के संघ-समूह को गण कहते हैं / इसमें पारस्परिक सहमति अथवा सम्मति के आधार से राज्यव्यवस्था का निर्णय किया जाता है / अतएव उसके प्राधार से नामस्थापन गणनाम कहा जाता है / __नौ मल्ली, नी लिच्छवी इन अठारह राजारों के राज्यों का एक गणराज्य था। इन के नाम शास्त्रों में आये हैं / अतः यहाँ उदाहरण के रूप में मल्ल, मल्लदत्त आदि नामों का उल्लेख किया है। जीवितहेतुनाम 290. से कि तं जीवियाहे ? जीवियाहेउं अवकरए उक्कुरुडए उज्झियए कज्जवए सुष्पए। से तं जीवियाहेउं / [290 प्र.] भगवन् ! जीवितहेतुनाम का क्या स्वरूप है ? (290 उ.] आयुष्मन् ! (जिस स्त्री की संतान जन्म लेते ही मर जाती हो उसकी संतान को) दीर्घकाल तक जीवित रखने के निमित्त नाम रखने को जीवितहेतुनाम कहते हैं। जैसे—अबकरक (कचरा), उत्कुष्टक (उकरडा), उज्झितक (त्यागा हुआ), कचवरक (कूड़े-कचरे का ढेर), सूर्पक (सूपड़ा-अन्न में से भूसा आदि निकालने का साधन) आदि / ये सब जीवितहेतुनाम हैं। विवेचन—सूत्र में जीवितहेतुनाम का स्वरूप बताया है। संतान के प्रति ममत्वभाव और किसी न किसी प्रकार से संतान जीवित रहे, यह भावना इस नामकरण में अन्तनिहित है। प्राभिप्रायिकनाम 291. से कि तं आभिष्पाइयनामे ? आभिप्पाइयनामे अंबए निबए बकुलए पलासए सिणए पिलुयए करीरए / सेतं आभिप्पाइयनामे / से तं ठवणप्पमाणे। [291 प्र.] भगवन् ! आभिप्रायिकनाम का क्या स्वरूप है ? [291 उ.] आयुष्मन् ! (गुण की अपेक्षा रक्खे विना अपने अभिप्राय के अनुसार मनचाहा नाम रख लेना आभिप्रायिक नाम कहलाता है) जैसे--. अंबक, निम्बक, बकुलक, पलाशक, स्नेहक, पोलुक, करीरक आदि प्राभिप्रायिक नाम जानना चाहिये / यह स्थापनाप्रमाणनिष्पन्न नाम की प्ररूपणा है / ___ विवेचन-सूत्र में स्थापनाप्रमाणनिष्पन्न नाम के अंतिम भेद आभिप्रायिक नाम का स्वरूप बतलाया है। आभिप्रायिकनामनिष्पत्ति का आधार अपना अभिप्राय ही है / उदाहरण के रूप में बताये गये नामों की तरह अन्य नाम स्वयमेव समझ लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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