________________ नामाधिकार निरूपण] आकर-स्वर्ण आदि धातुओं, रत्तों और खनिज पदार्थों की खाने हों। नगर-अठारह प्रकार के राजकर (टैक्स) से जो मुक्त हो। खेड-जिसके चारों ओर मिट्टी का कोट बनाया गया हो। कर्बट-कुत्सित नगर -जहाँ जीवनोपयोगी साधनों का अभाव हो / मडम्ब - जिसके अासपास ढाई कोस तक कोई गांव न हो। द्रोणमुख-जो जल और स्थल रूप पावागमन के मार्गों से जुड़ा हुआ हो / पट्टन (पत्तन) जहाँ सभी प्रकार की वस्तुएँ मिलती हों / आश्रम-तापसों का आवासस्थान / संवाह- अनेक प्रकार के लोगों से व्याप्त स्थान अथवा पथिकों का विश्वामस्थान / सन्निवेशसार्थवाहों का निवासस्थान / प्रधानपदनिष्पन्ननाम 268. से कि तं पाहण्णयाए ? पाहण्णयाए असोगवणे सत्तवण्णवणे चंपकवणे चूयवणे नागवणे पुन्नागवणे उच्छवणे दक्खवणे सालवणे / से तं पाहण्णयाए। [268 प्र.] भगवन् ! प्रधानपदनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? |268 उ. आयुष्मन् ! प्रधानपदनिष्पन्ननाम का स्वरूप इस प्रकार है, जैसे-- अशोकवन, सप्तपर्णवन, चंपकवन, आम्रवन, नागवन, पुन्नागवन, इक्षुवन, द्राक्षावन, शालवन, ये सब प्रधानपदनिष्पन्ननाम हैं / विवेचन यह सूत्र प्रधानपदनिष्पन्ननाम का सूचक है। जिसकी प्रचुरता-बहुलता हो वह यहाँ प्रधान कहा गया है और उस प्रधान की अपेक्षा निष्पन्ननाम प्रधानपदनिष्पन्ननाम कहलाता है। अशोकवन आदि उदाहरणों में जैसे अशोकवन में अन्य वृक्षों का सद्भाव तो है, किन्तु अशोक वक्षों की प्रचुरता होने से उस वन को 'अशोकवन' इस नाम से सम्बोधित किया जाता है / सप्तपर्णवन आदि नामों के लिये भी यही कारण जानना चाहिये। ___ गौणनाम से प्रधानपदनिष्पन्ननाम में यह अन्तर है कि गौणनाम में तो क्षमादि गुण से क्षमण आदि शब्दों का वाच्यार्थ सम्पूर्ण रूप से उस नाम वाले में घटित होता है, जबकि प्रधानपदनिष्पन्नताम में उस-उस नाम के वाच्यार्थ की मुख्यता और शेष की गोणता रहती है। किन्तु गौणता के कारण उनका प्रभाव नहीं होता है। जैसे अशोक वृक्षों की प्रचुरता होने पर भी वृक्षों का अभाव नहीं है। अनादिसिद्धान्तनिष्पन्ननाम 269. से कि तं अणादियसिद्धतेणं? अणादियसिद्धतेणं धम्मस्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासस्थिकाए जीवस्थिकाए पोग्गलस्थिकाए अद्धासमए / से तं अणादियसिद्धतेणं / [269 प्र.] भगवन् ! अनादिसिद्धान्तनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org