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________________ नामाधिकार निरूपण]] [199 तेषां कटतटभ्रष्टैगजानां मदविन्दुभिः / प्रावर्तत नदी घोरा हस्त्यश्वरथवाहिनी / / अर्थात् उन हाथियों के कट-तट से झरते हुए मदविन्दुओं से एक घोर (विशाल) नदी बह निकली कि जिसमें हाथी, घोड़ा, रथ और सेना बहने लगी। यह कथन अलीकता दोष से दुषित है, क्योंकि मदजल से नदी का निकलना न तो किसी ने देखा है, न सुना है और न संभव है। यह तो एक कल्पनामात्र है। इस अलीक दोष से अद्भुतरस उत्पन्न हुआ है। इसी प्रकार से अन्यत्र भी यथासंभव सूत्रदोषों से उन-उन रसों की उत्पत्ति जानना चाहिये। परन्तु यह एकान्त नियम नहीं है कि सभी रस अलीकादि दोषों की विरचना से ही उत्पन्न होते है / जैसे-तपश्चरण विषयक वीररस तथा प्रशान्त आदि रसों की उत्पत्ति अलीकादि सूत्रदोषों के बिना भी होती है। 'सुद्धा वा मिस्सा वा हवंति' अर्थात् किसी काव्य में शुद्ध-एक ही रस और किसी में दो और दो से अधिक रसों का समावेश होता है / अब नाम अधिकार के अंतिम भेद दसनाम का वर्णन करते हैं -- दसनाम 263. से कि तं दसनामे ? दसनामे दसविहे पण्णत्ते / तं जहा–गोणे 1 नोगोण्णे 2 आयाणपदेणं 3 पडिबक्खपदेणं 4 पाहण्णयाए 5 अणादियसिद्धतेणं 6 नामेणं 7 अवयवेणं 8 संजोगेणं 6 पमाणेणं 10 / [263 प्र.] भगवन् ! दसनाम का क्या स्वरूप है ? [263 उ.] आयुष्मन् ! दस प्रकार के नाम दस नाम कहलाते हैं / वे इस प्रकार हैं 1. गौणनाम, 2. नोगौणनाम, 3. प्रादानपदनिष्पन्ननाम, 4. प्रतिपक्षपदनिष्पलनाम, 5. प्रधानपदनिष्पन्ननाम, 6. अनादिसिद्धान्तनिष्पत्ननाम, 7. नामनिष्पन्ननाम, 8. अवयवनिष्पन्ननाम, 9. संयोगनिष्पन्ननाम, 10. प्रमाणनिष्पन्ननाम / विवेचन—प्रस्तुत सूत्र दसनाम की व्याख्या की भूमिका रूप है। यहाँ बतलाया है कि विभिन्न आधारों को लेकर वस्तु का नामकरण किया जा सकता है। प्रस्तुत में दस आधार कहे गए हैं / उनका आशय यह हैगौणनाम 264. से कि तं गोणे? गोण्णे खभतीति खमणो, तपतीति तपणो, जलतीति जलणो, पवतीति पवणो / से तं गोण्णे / [264 प्र.] भगवन् ! गौण---गुणनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [264 उ.] आयुष्मन् ! गौण-गुणनिष्पन्ननाम का स्वरूप इस प्रकार है जो क्षमागुण से युक्त हो उसका 'क्षमण' नाम होना, जो तपे उसे तपन (सूर्य), प्रज्वलित हो उसे ज्वलन (अग्नि), जो पवे अर्थात् बहे उसे पवन कहना / यह गौणनाम का स्वरूप है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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