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________________ 164] अनुयोगद्वारसूत्र . [245 प्र.] भगवन् ! क्षायोपशमिकभाव का क्या स्वरूप है ? [245 उ.] आयुष्मन् ! क्षायोपशामिकभाव दो प्रकार का है / बह इस प्रकार-१. क्षयोपशम और 2. क्षयोपशमनिष्पन्न / 246. से कि तं खओवसमे ? खओवसमे चउण्हं घाइकम्माणं खओक्समेणं / तं जहा नाणावरणिज्जस्स 1 सणावरणिज्जस्स 2 मोहणिज्जस्स 3 अंतराइयस्स 4 / से तं खओवसमे। |246 प्र.] भगवन् ! क्षयोपशम का क्या स्वरूप है ? [246 उ.] अायुष्मन् ! 1. ज्ञानावरणीय, . दर्शनावरणीय, 3. मोहनीय अं 8. अन्तराय, इन चार घातिकर्मों के क्षयोपशम को क्षयोपशमभाव कहते है। 247. से कि तं खओवसमनिप्फन्ने ? खओवसमनिष्फन्ने अणेगविहे पण्णते। तं जहा—खोवसमिया आभिणिबोहियणाणलद्धी जाव खओवसमिया मणपज्जवणाणलद्धी, खओवसमिया मतिअण्णाणलद्धी खओक्समिया सुयअण्णाणलद्धी खओवसमिया विभंगणाणलद्धी, खओवस मिया चक्खुदसणलद्धी एवमचक्खुदंसणलद्धी ओहिदसणलद्धी, एवं सम्मईसणलद्धी मिच्छादसणलद्धी सम्मामिच्छादसणलद्धी, खओवसमिया सामाइयचरित्तलद्धी एवं छेदोवट्ठावणलद्धी परिहार विसुद्धियलद्धी सुहमसंपराइयलद्धी एवं चरित्ताचरित्तलद्धी, खग्रोवसमिया दाणलद्धी एवं लाभ० भोग० उवभोग० खओवसमिया बीरियलद्धी एवं पंडियवीरियलद्धी बालवीरियलद्धी बालपंडियवीरियलद्धी, खओवसमिया सोइंदियलद्धी जाव खोवसमिया फासिदियलद्धी, खओवसमिए आयारधरे एवं सूयगडधरे ठाणधरे समवायधरे विवाहपणतिधरे एवं नायाधम्मकहा० उवासगदसा० अंतगडदसा० अणुत्तरोववाइयदसा०पण्हावागरण खओवसमिए विवागसुपधरे खओवसमिए दिट्टिवायधरे, खओवसमिए णवपुथ्वी जाव चोद्दसपुग्वी, खओवसमिए गणी खओवसमिए वायए। से तं खओवसमनिप्फण्णे / से तं खओवसमिए / [247 प्र. भगवन् ! क्षयोपशमनिष्पन्न क्षायोपशामिकभाव का क्या स्वरूप है ? [247 उ.] आयुष्मन् ! क्षयोपशमनिष्पन्न क्षायोपशमिकभाव अनेक प्रकार का है। यथाक्षायोपशमिकी प्राभिनिबोधिकज्ञानलब्धि यावत् क्षायोपशमिकी मनःपर्यायनानलब्धि, क्षायोपशमिकी मति-अज्ञानलब्धि, बायोपशमिकी श्रुत-अज्ञानलब्धि, क्षायोपशामिकी विभंगज्ञानलब्धि, क्षायोपशमिकी त्रक्षुदर्शनलब्धि, इसी प्रकार अचक्षुदर्शनलब्धि, अवधिदर्शनलब्धि, सम्यग्दर्शनलब्धि, मिथ्यादर्शनलब्धि. सम्यगमिथ्यादर्शनलब्धि, क्षायोपशमिकी सामायिक चारित्रलब्धि, छेदोपस्थापनालब्धि, परिहारविशुद्धिलब्धि, सूक्ष्मसंपरायिकल ब्धि, चारित्राचारित्रलब्धि, क्षायोपशमिकी दान-लाभ-भोग-उपभोगलब्धि, क्षायोगशमिकी वीर्यलब्धि, पंडितवीर्यलब्धि, बालवीर्यलब्धि, बालपंडितवीर्यलब्धि, क्षायोपगमिकी योन्द्रियल ब्धि यावत् क्षायोपशमिकी स्पर्ण नेन्द्रियलब्धि. क्षायोपशामिक प्राचारांगधारी. स्त्रकृतांगधारी, स्थानांगधारी, समवायांगधारी, ब्याख्याप्रज्ञप्तिधारी, नाताधर्मकथांगधारी, उपासकदशांगधारी, अन्तकृदशांगधारी, अनुत्तरोपपातिकदशांगधारी, प्रश्नव्याकरणधारी, क्षायोपशमिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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