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________________ आनुपूर्वी निरूपण 101 विवेचन-सूत्र में एक और अनेक द्रव्यों की अपेक्षा अन्तरप्ररूपणा की गई है। प्रश्नोत्तर में भिन्नता क्यों ? यद्यपि प्रश्न तो पानुपूर्वी द्रव्यों को आश्रित करके किया है लेकिन उत्तर में 'तिण्ण वि' तीनों को ग्रहण इसलिये किया है कि इन तीनों द्रव्यों का अन्तर समान है। जिसका भाव यह है कि जिस समय कोई एक आनुपूर्वी द्रव्य किसी एक विवक्षित क्षेत्र में एक समय तक अवगाढ रह कर किसी दूसरे क्षेत्र में अवगाहित हो जाता है और फिर पुनः अकेला या किसी दूसरे द्रव्य से संयुक्त होकर उसी विवक्षित आकाशप्रदेश में अवगाढ होता है तो उस समय उस एक आनुपूर्वी द्रव्य का अन्तरकाल-विरहकाल जघन्य एक समय है तथा जब वही द्रव्य अन्य क्षेत्र-प्रदेशों में असंख्यात काल तक अवगाढ रह कर मात्र उसी अथवा अन्य द्रव्यों से संयुक्त होकर पूर्व के ही अवगाहित क्षेत्रप्रदेश में अवगाहित होता है तब उत्कृष्ट विरहकाल असंख्यात काल होता है। अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक द्रव्यों के लिये भी इसी प्रकार जानना चाहिये। विरहकाल अनन्तकालिक क्यों नहीं?–यद्यपि द्रव्यानुपूर्वी में एक द्रव्य की अपेक्षा उत्कृष्ट विहरकाल अनन्तकाल का बताया है / परन्तु क्षेत्रानुपूर्वी में असंख्यात काल का इसलिये माना गया है कि द्रव्यानुपूर्वी में तो विवक्षितद्रव्य से दूसरे द्रव्य अनन्त हैं। अतः उनके साथ क्रम-क्रम से संयोग होने पर पुनः अपने स्वरूप की प्राप्ति में उसे अनन्त काल लग जाता है / परन्तु यहाँ (क्षेत्रानुपूर्वी में) विवक्षित अवगाहक्षेत्र से अन्य क्षेत्र असंख्यात प्रदेश प्रमाण ही है। इसलिये प्रतिस्थान में अवगाहना की अपेक्षा उसकी संयोगस्थिति असंख्यात काल है। जिससे विवक्षित प्रदेश से अन्य असंख्यात क्षेत्र में परिभ्रमण करता हुआ द्रव्य पुन: उसी विवक्षित प्रदेश में अन्य द्रव्य से संयुक्त होकर या अकेला ही असंख्यात काल के बाद अवगाहित होता है। नाना द्रव्यों को अपेक्षा अंतर क्यों नहीं ?- सभी प्रानुपूर्वी द्रव्य एक साथ अपने स्वभाव को छोड़ते नहीं हैं। क्योंकि असंख्यात ग्रानुपूर्वी द्रव्य सदैव विद्यमान रहते हैं। अतएव नाना द्रव्यों की अपेक्षा अंतर नहीं है / अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक द्रव्यों के अंतर का विचार भी इसी प्रकार जानना चाहिये। अनुगमगत भागप्ररूपणा 156. णेगम-ववहाराणं आणुपुवीदव्वाइं सेसदवाणं कतिभागे होज्जा ? तिणि वि जहा दव्वाणुपुवीए। [156 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत प्रानुपूर्वी द्रव्य शेष द्रव्यों के कितनेवें भाग प्रमाण होते हैं ? [156 उ.] अायुष्मन् ! द्रव्यानुपूर्वी जैसा ही कथन तीनों द्रव्यों के लिये यहाँ भी समझना चाहिये। विवेचन --सूत्र में द्रव्यानुपूर्वी के अतिदेश द्वारा क्षेत्रानुपूर्वी के द्रव्यों की भागप्ररूपणा का कथन किया है। इसका भाव यह है कि अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक द्रव्यों की अपेक्षा आनुपूर्वी द्रव्य असंख्यान भागों से अधिक हैं तथा शेष द्रव्य प्रानुपूर्वी द्रव्यों के असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। ___ आनुपूर्वी द्रव्य असंख्यात भागाधिक कैसे ? -- प्रानुपूर्वी द्रव्य को असंख्यात भागों से अधिक मानने पर जिज्ञासु का प्रश्न है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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