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________________ [अनुयोगद्वारसूत्र [88 उ.] आयुष्मन् ! उपक्रम के अर्थ को जानने के साथ जो उसके उपयोग से भी युक्त हो, वह आगमभावोपक्रम है। 89. से कि तं नोआगमतो भावोवक्कमे ? नोआगमतो भावोवक्कमे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा---पसत्थे य 1 अपसत्थे य 2 / [89 प्र.] भगवन् ! नोआगमभावोपक्रम का स्वरूप क्या है ? [89 उ.] आयुष्मन् ! नोभागमभावोपक्रम दो प्रकार का कहा है / यथा-१. प्रशस्त और 2. अप्रशस्त / 90. से किं तं अपसत्थे भावोवक्कमे ? अपसत्थे भावोवक्कमे डोडिणि-गणियाऽमच्चाईणं से तं अपसत्थे भावोवक्कमे / [90 प्र.] भगवन् ! अप्रशस्त भावोपक्रम का क्या स्वरूप है ? [90 उ.] आयुष्मन् ! डोडणी ब्राह्मणी, गणिका और अमात्यादि का अन्य के भावों को जानने रूप उपक्रम अप्रशस्त नोागमभावोपक्रम है / ' 91. से कि तं पसत्थे भावोवक्कमे ? पसत्थे भावोवक्कमे गुरुमादीणं / से तं पसत्थे भावोवक्कमे / से तं नोआगमतो भावोवक्कमे / से तं भावोवक्कमे। [91 प्र.] भगवन् ! प्रशस्त भावोपक्रम का क्या स्वरूप है ? [91 उ.] आयुष्मन् ! गुरु आदि के अभिप्राय को यथावत् जानना प्रशस्त नोप्रागमभावोपक्रम है। इस प्रकार से नोप्रागमभावोपक्रम का और इसके साथ ही भावोपक्रम का वर्णन पूर्ण हया जानना चाहिये। विवेचन-सूत्रकार ने यहाँ सप्रभेद भावोपक्रम का स्वरूप निर्देश करने के साथ भावोपक्रम की वक्तव्यता की समाप्ति का संकेत किया है। भावोपक्रम--स्वभाव, सत्ता, आत्मा, योनि और अभिप्राय ये भाव शब्द के पांच अर्थ हैं। इनमें से यहाँ अभिप्राय अर्थ ग्रहण किया गया है। अतएव अर्थ यह हुआ कि भाव-अभिप्राय के यथावत् परिज्ञान को भावोपक्रम कहते हैं और उपक्रम शब्द के अर्थ के ज्ञान के साथ उसके उपयोग से युक्त जीव आगमभावोपक्रम कहलाता है। नोग्रागमभावोपक्रम के अप्रशस्त और प्रशस्त यह दो भेद होने का कारण यह है कि डोडिणी, ब्राह्मणी प्रादि ने परकीय अभिप्राय को जाना तो अवश्य किन्तु बह सांसारिक फलजनक होने से अप्रशस्त है / गुरु आदि का अभिप्राय मोक्ष का कारण होने से प्रशस्त है / 1. इन दृष्टान्तों के कथानक परिशिष्ट में देखिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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