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________________ 54] [अनुयोगद्वारसूत्र [83 उ.] आयुष्मन् ! खांड (शक्कर), गुड़, मिश्री अथवा राब आदि पदार्थों में उपायविशेष से मधुरता की वृद्धि करने और इनके विनाश करने रूप उपक्रम को अचित्तद्रव्योपक्रम कहते हैं। मिश्रद्रव्योपक्रम 84. से कि तं मीसए दवोवक्कमे ? मोसए दव्वोवक्कमे से चेव थासग-आयंसगाइमंडिते आसादी। से तं मीसए दव्योवक्कमे / स तं जाणयसरीरभवियस रोरवइरित्ते दव्वोवक्कमे / से तं नोआगमओ दबोवक्कमे / से तं दव्योवक्कमे / [84 प्र.] भगवन् ! मिश्रद्रव्योपक्रम का क्या स्वरूप है ? [84 उ.] अायुष्मन् ! स्थासक, दर्पण आदि से विभुषित एवं (कुंकुम आदि से) मंडित अश्वादि सम्बन्धी उपक्रम को मिश्रद्रव्योपक्रम कहते हैं। इस प्रकार से ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्योपक्रम का स्वरूप जानना चाहिये और इसके साथ ही नोग्रागमद्रव्योपक्रम एवं द्रव्योपक्रम की वक्तव्यता पूर्ण हुई / विवेचनअचित्तद्रव्योपक्रम की व्याख्या सुगम है, अचित्त पदार्थों में गुणात्मक वृद्धि अथवा उनको नष्ट करने के लिये किया जाने वाला प्रयत्न अचित्तद्रव्योपक्रम कहलाता है। मिश्रद्रव्योपक्रम के विषय में यह जानना चाहिये--अश्व, बैल आदि सचित्त हैं और स्थासक, आदर्श, कुंकुम आदि अचित्त हैं। मिश्र शब्द द्वारा इन दोनों का बोध कराया है। ऐसे विभूषित, मंडित अश्यादि को शिक्षण देकर विशेष गुणों से युक्त करना तो परिकर्मरूप द्रव्योपक्रम है एवं तलवार आदि के द्वारा उनका प्राणनाश करना आदि वस्तुविनाशरूप द्रव्योपक्रम है / शब्दार्थ-थासग (स्थासक) अश्व को विभूषित करने वाला प्राभूषण / आयंसग (आदर्श)बैल आदि के गले का दर्पण जैसा चमकीला प्राभूषण विशेष / क्षेत्रोपक्रम 85. से कि तं खेत्तोवक्कमे ? खेतोवक्कमे जण्णं हल-कुलियादीहिं खेताई उवक्कामिजंति / से तं खेत्तोवक्कमे / [85 प्र.] भगवन् ! क्षेत्रोपक्रम का क्या स्वरूप है ? [85 उ.] आयुष्मन् ! हल, कुलिक आदि के द्वारा जो क्षेत्र को उपक्रान्त किया जाता है, वह क्षेत्रोपक्रम है। विवेचन-यहाँ संक्षेप में क्षेत्रोपक्रम का स्वरूप बतलाया है और क्षेत्र शब्द से गेहूं आदि अन्न को उत्पन्न करने वाले स्थान-खेत को ग्रहण किया है। अतएव हल और कुलिक-खेत में से तणादि को हटाने के काम में आने वाला एक प्रकार का हल (देशी भाषा में इसे 'बखर' कहते हैं / ) से जोतकर खेत को बीजोत्पादन योग्य बनाना परिकर्म विषयक क्षेत्रोपक्रम है और उसी क्षेत्र को हाथी आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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