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________________ प्रकाशकीय श्रीनन्दीसूत्र पाठकों के हाथों में है। इस सूत्र का अनुवाद और विवेचन श्रमणसंघीय प्रख्यात विदुषी महासती श्री उमरावकुवरजी म. 'अर्चना' ने किया है। महासती 'अर्चना' जी से स्थानकवासी समाज भलीभांति परिचित है। आपके प्रशस्त साहित्य को नर-नारी बहे ही चाव से पढ़ते-पढ़ाते हैं। प्रवचन भी प्रापके अन्तरतर से विनिर्गत होने के कारण अतिशय प्रभावोत्पादक, माधर्य से अोतप्रोत एवं बोधप्रद होते हैं। प्रस्तुत पागम का अनुवाद सरल और सुबोध भाषा में होने से स्वाध्यायप्रेमी पाठकों के लिए यह संस्करण अत्यन्त उपयोगी होगा, ऐसी ग्राशा है। प्रस्तुत सूत्र परम मांगलिक माना जाता है। हजारों वर्षों से ऐमी परम्परा चली आ रही है। अतएव साधु-माध्वीगण इसका सज्झाय करते हैं। अनेक श्रावक भी। उन सब के लिए न अधिक विस्तृत, न अधिक संक्षिप्त, मध्यम शैली में तैयार किया गया यह संस्करण विशेषतया वोधप्रद होगा / समिति अपने लक्ष्य की प्रोर, यथाशक्य सावधानी के साथ किन्तु तीव्र गति से, आगे बढ़ रही है। विपाकसूत्र तथा औपपातिकसूत्र भी लगभग साथ हो प्रकाशित हो रहे हैं। भगवतीसूत्र का मुद्रण चाल है। राजप्रश्नीय भी प्रेस में जाने के लिए तैयार है। यह सब श्रमणसंघ के युवाचार्य पण्डितप्रवर मुनिश्री मिश्रीमलजी म. सा. 'मधुकर' के कठिन श्रम और आगमज्ञान के अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार के प्रति तीव्र लगन तथा गंभीर पाण्डित्य के कारण संभव हो सक रहा है। अतएव हम युवाचार्यश्रीजी के प्रति आभार-निवेदन करने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं पा रहे हैं। अर्थमहायकों के और विशेषत: इस सुत्र के प्रकाशन में विशिष्ट आथिक सहयोग प्रदान करने वाले समाज के सजग एवं प्रमुख कार्यकर्ता श्रीमान् सेठ रतनचंदजी सा. चोरड़िया के भी हम आभारी हैं। आपका परिचय अन्यत्र दिया जा रहा है। ___ इनके अतिरिक्त अन्य सब सहायकों, कार्यकर्त्तानों एवं वैदिक प्रेस के प्रबन्धक प्रादि महानुभावों के स्नेहपूर्ण सहयोग का भी हम हृदय से स्वागत करते हैं। श्रमणसंघ के प्रथम प्राचार्य जैनागम-रत्नाकर प्राचार्यवर्य श्रीवात्मारामजी म. सा. के जो भी आगम प्रकाशित हुए हैं, वे हमारे पथप्रदर्शक हैं। इसके लिए हम कृतज्ञ हैं। रतनचंद मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष जतनराज मेहता महामंत्री श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर चांदमल विनायकिया मंत्री [7] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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