________________ श्रु तज्ञान] [197 इसी का वर्णन अच्छिन्नच्छेद नय के मत से इस प्रकार है, यथा-धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है। प्रश्न होता है कि वह कौन सा धर्म है जो सर्वोत्कृष्ट मंगल है ? उत्तर में बताया जाता है कि-- "अहिंसा संजमो तवो।" इस प्रकार दोनों पद सापेक्ष सिद्ध हो जाते हैं / यद्यपि बाईस सूत्र और अर्थ दोनों प्रकार से व्यवच्छिन्न हो च के हैं किन्तु इनका परंपरागत अर्थ उक्त प्रकार से किया गया है। वृत्तिकार ने त्रैराशिक मत आजीविक सम्प्रदाय को बताया है, रोहगुप्त द्वारा प्रवर्तित सम्प्रदाय को नहीं। (3) पूर्व १०६-से कि तं पुव्वगए ? पुव्वगए चउद्दसविहे पण्णते, तं जहा (1) उम्पायपुव्वं, (2) अग्गाणीयं, (3) वोरिग्रं, (4) अस्थिनस्थिप्पवायं, (5) नाणप्पवायं, (6) सच्चप्पवायं, (7) प्रायप्पवायं, (8) कम्मप्पवायं, (6) पच्चक्खाणप्पवायं, (10) विज्जाणुप्पवायं, (11) अवंझ, (12) पाणाऊ, (13) किरियाविसालं, (14) लोकबिंदुसारं / (1) उपाय-पुव्वस्स णं दस वत्थू, चत्तारि चूलियावत्थू पन्नत्ता, (2) प्रग्यागेणीयपुवस्स णं चोद्दस वत्थू, दुवालस चूलियावत्थू पन्नत्ता, (3) वीरिय-पुवस्स णं अट्ठ वत्थू, अट्ठ चूलिया-वत्थू पण्णत्ता, (4) अस्थिनत्थिप्पवाय-पुब्बस्स णं अट्ठारस वत्यू, दस चूलियावत्थू पण्णत्ता, (5) नाणप्पवायपुवस्स णं वारस वत्थू पण्णत्ता, (6) सच्चप्पवायपुवस्स णं दोषिण वत्थू पण्णत्ता, (7) प्रायप्पवायपुवस्स णं सोलस वत्थू पण्णत्ता, (8) कम्मप्पवायपुवस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता, (9) पच्चक्खाणपुवस्स णं वीसं वत्थू पण्णत्ता, (10) विज्जाणुष्पवायपुवस्स णं पन्नरस वत्थू पण्णत्ता, (11) अवंज्झयुवस्स णं बारस वत्थू पण्णत्ता, (11) पाणाउपुव्वस्स णं तेरस वत्थू पण्णत्ता, (13) किरिबाविसालपुवस्स गं तीसं वत्थू पण्णत्ता, (14) लोकबिंदुसारपुवस्स णं पणवीसं वत्थू पण्णत्ता। दस चोदस अट्र प्रद्वारस बारस दुवे अवस्थणि / सोलस तीसा वीसा पन्नरस अणुप्पवायम्मि // 1 // वारस इक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थूणि / तीसा पुण तेरसमे, चोद्दसमे पण्णवीसानो // 2 // चत्तारि दुवालस अट्ट चेव दस चेव चुल्लवत्थूणि / पाइल्लाण चउण्हं, सेसाणं चूलिया नस्थि // 3 // से तं पुश्वगए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org