________________ 716] [उत्तराध्ययनसूत्र तो नाणदंसणसमग्गो तो वंदिऊण तोसिया परिसा सव्वा तोऽहं नाहो G थलेसु बीयाई ववंति कासगा थावरं जंगमं चेव थेरे गणहरे गग्गे xxmmx Y 90. 1 की 3 दिगिछापरिगए देहे 60 दिव्वमाणुसतेरिच्छं दिव्वे य जे दीवे य इइ के वुत्ते ? दीसंति बहवे दीहाउया इड्ढिमंता दुक्कर खलु भो निच्च दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो दुज्जए कामभोगे य दुद्ध-दही विगईओ 39 दुप्परिच्चया इमे कामा दुमपत्तए पंडुरए जहा दुल्लहे खलु माणुसे भवे 6 दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं 3 दुविहा पाउजीवा उ 7 दुविहा पुढवी जीवा उ दुविहा तेउजीवा उ 24 विहा ते भवे 34 43 विहा वणस्सई 102 दुविहा वाउजीवा 36 223 दुहनो गई बालस्स देव-दाणव-गंधव्वा 0 24 व दठ्ठण रहनेमि तं दवग्गिणा जहा रणे दवदवस्स चरई दव्वनो खेत्तो दव्वग्रो खेत्तयो दव्वनो चक्खुसा दव्याण सव्वभावा दवे खेत्ते काले दस उदही पलिग्रोवम दस चेव सहस्साई दस चेव सागराई दसण्णरज्जं मुदियं दस चेव नसएसु दस वाससहस्साई 70 108 0 . or mrYr mmmm orm 23 22 34 34 20 22 01.66 26 दस सागरोवमाऽऽऊ दसहा उ भवणवासी दंडाणं गारवाणं च दंतसोहणमाइस्स दंसणनाणचरित्ते दाणे लाभे य भोगे य दाराणि य सुया चेव दासा दसपणे प्रासी दिवसस्स चउरो भागे . पोरिसीणं 53 देव-मणुस्सपरिवुडो 41 देवलोगो संतो 48 देवसियं च 162 देवा चउविवहा वुत्ता 205 देवा भवित्ताण पुरे भवंमि 4 देवाभियोगेण निग्रोइएणं देवा य देवलोगम्मि 25 देवे नेरइए 15 दो चेव सागराई 14 14 12 13 10 36 40 204 1 21 7 14 222 28 33 18 11 धण-धन-पेसवग्गेसु 20 धणं पभूयं 16 14 26 16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.