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________________ प्रकाशकीय श्रमण भगवान महावीर की 25 वी निर्वाण-शताब्दी के पावन प्रसंग पर आगमों के रूप में सुरक्षित उनको भूल एवं पवित्र देशना का जन-साधारण में प्रचार-प्रसार करने की भावना से प्रागम-प्रकाशन का कार्य प्रारंभ हया था और पागम-प्रकाशन समिति ने अपनी निर्धारित नीति के अनुसार अभी तक अठारह खंडों में अनेक ग्रामम ग्रन्थों को प्रकाशित करके जन साधारण को सुलभ कराया है, जिनकी विद्वानों, साहित्यसंशोधकों एवं भाषाशास्त्रियों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है तथा जैन वाङ्मय के इस विशिष्ट अंश को यथावसर प्रकाशित करने की प्रेरणा के लिये पूज्यप्रवर युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म. 'मधुकर' का शत-शत अभिनन्दन किया। अब इसी आगम-प्रकाशन की शृखला में 'उत्तराध्ययन-सूत्र' को पाठकों के करकमलों में पहुंचाते हए हमें संतोष का अनुभव हो रहा है, परन्तु अतिशय दुःख इस बात का है कि आज आगमप्रकाशन की प्रेरणा के स्रोत एवं प्रधान संपादक पूज्य युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी हमारे बीच नहीं रहे हैं। पूज्य यूवाचार्यश्री ने जैन प्राममों तथा विविध दर्शनों के प्रौढ़ साहित्य का तुलनात्मक विधि से तलस्पर्शी अध्ययन-मनन-चिन्तन किया और अपनी निरीक्षण, परीक्षण प्रतिभा के कारण जैन साहित्य की गरिमा को व्यापक बनाने का चतुर्मुखी प्रयास किया। ऐसा करने के लिये अन्य विद्वानों को भी प्रोत्साहित किया / परिणामतः जैन दर्शन के अनेक महान ग्रन्थ जनभाषा में जन साधारण के लिये सुलभ हो सके। यद्यपि यूवाचार्यश्री के आकस्मिक एवं प्रकल्पित देहावसान से हम सब स्तब्ध हैं, मर्माहत हैं, परन्तु उनके परोक्ष प्रेरक आशीर्वादों का पाथेय लेकर प्रायमप्रकाशन के कार्य में किचिन्मात्र भी व्यवधान न पाए, इसके लिये प्रयत्नशील रहेंगे। आज हमारा उत्तरदायित्व गुरुतर हो गया है और इस उत्तरदायित्व का यथाशक्ति निर्वाह करना हम अपना कर्तव्य मानते हैं। जनसाधारण में उत्तराध्ययन सूत्र के अध्ययन की परंपरा विशेष रूप से देखी जाती है। इसलिये इसके अनुवादक विवेचक मुनि श्री राजेन्द्र मुनिजी शास्त्री ने अपने अनुवाद को सर्वजनसूलभ बनाने के लिये यथास्थान आवश्यक विवेचन करके सुगम बना दिया है, जिससे पृष्ठसंख्या तो अधिक हो गई है, परन्तु पूरा का पूरा सूत्र एक साथ पाठकों को मिल सके, इस अपेक्षा से एक ही जिल्द में प्रकाशित किया है। अनुवाद एवं विवेचन को और अधिक स्पष्ट करने की दृष्टि से इसका संशोधन कार्य विद्वदवर्य यूवाचार्यप्रवर श्री मधुकर मुनिजी म. एवं पं. श्री शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने विशेष रूप में किया है। प्रस्तुत आगम को विस्तृत एवं विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना विख्यात विद्वान् श्री देवेन्द्र मुनिजी शास्त्री ने लिखी है और इस संस्करण के महत्त्व में वृद्धि की है। हम उनके आभारी हैं। प्रज्ञापनासूत्र के द्वितीय खंड का मुद्रण कार्य चाल है और निरयाबलिका प्रादि पांच उपांग प्रेस में दिये जा रहे हैं। अन्य प्रागमों के अनुवाद आदि का कार्य चाल है। प्रस्तुत प्रकाशन कार्य में जिन-जिन महानुभावों से बौद्धिक, प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग हमें प्राप्त हो रहा है, उन सब के तथा समस्त अर्थ सहयोगियों तथा विशेषतः सेठ श्री मांगीलालजी साहब सुराणा के, जिनके विशेष आर्थिक सहयोग से प्रस्तुत सूत्र मुद्रित हो रहा है, अतीव प्राभारी हैं। श्री सुराणाजी का परिचय अन्यत्र दिया जा रहा है। श्रुतनिधि के प्रचार-प्रसार के इस पवित्र अनुष्ठान में आप सभी हमारे सहयोगी बनें ऐसी आकांक्षा है। रतनचन्द्र मोदी जतनराज महता चांदमल विनायकिया कार्यवाहक अध्यक्ष प्रधानमंत्री श्री आगम-प्रकाशन-समिति, ब्यावर मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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