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________________ अट्ठाईसवाँ अध्ययन : मोक्षमार्गगति] [477 सम्यक्त्व-श्रद्धा के स्थायित्व के तीन उपाय 28. परमत्थसंथवो वा सुविट्ठपरमस्थसेवणा वा वि। वावण्णकुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा / / [28] परमार्थ का गाढ़ परिचय, परमार्थ के सम्यक् द्रष्टा पुरुषों की सेवा और व्यापनदर्शन (सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट) तथा कुदर्शन (मिथ्यादृष्टि) जनों (के संसर्ग) का वर्जन, यह सम्यक्त्व का श्रद्धान है, अर्थात् ऐसा करने से सम्यग्दर्शन में स्थिरता आती है। विवेचन-परमार्थसंस्तव-परम पदार्थों अर्थात्-जीवादि तत्त्वभूत पदार्थों का संस्तवअर्थात् उनके स्वरूप का बारबार चिन्तन करने से होने वाला प्रगाढ परिचय / सुदृष्ट-परमार्थसेवना-परम तत्त्वों को जिन्होंने भलीभाँति देख ( हृदयंगम कर) लिया है, ऐसे प्राचार्य, स्थविर या उपाध्याय आदि तत्वद्रष्टा पुरुषों की उपासना एवं सेवा / व्यापन-कुदर्शन-वर्जना-व्यापन और कुदर्शन / प्रथम शब्द में 'दर्शन' शब्द का अध्याहार करने से अर्थ होता है--जिनका सम्यग्दर्शन नष्ट हो गया है, ऐसे निह्नव आदि तथा कुदर्शन अर्थात् जिनके दर्शन (मत या दृष्टि) मिथ्या हों, ऐसे अन्य दार्शनिक, मिथ्यादृष्टि जनों का वर्जन / ___ ये तीन सम्यग्दर्शन को टिकाने के, सत्यश्रद्धा को निश्चल, निर्मल और गाढ रखने के उपाय हैं / ' सम्यग्दर्शन की महत्ता .29. नस्थि चरितं सम्मत्तविहूणं बंसणे उ भइयव्वं / सम्मत्त-चरित्ताई जुगवं पुत्वं व सम्मत्तं / / [26] (सम्यक् ) चारित्र सम्यग्दर्शन के बिना नहीं होता, किन्तु सम्यक्त्व चारित्र के विना भी हो सकता है / सम्यक्त्व और चारित्र युगपत्-एक साथ भी होते हैं, (किन्तु) चारित्र से पूर्व सम्यक्त्व का होना आवश्यक है। 30. नादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा / अगुणिस्स नस्थि मोक्खो नस्थि अमोक्खस्स निवाणं / / [30] सम्यग्दर्शनरहित व्यक्ति को (सम्यग्) ज्ञान नहीं होता। (सम्यम्) ज्ञान के विना चारित्र-गुण नहीं होता। चारित्र-गुण के बिना मोक्ष (कर्मक्षय) नहीं हो सकता और मोक्ष के विना निर्वाण (अचल चिदानन्द) नहीं होता। विवेचन-मोक्षमार्ग के तीनों साधनों का स्वरूप और साहचर्य-जिस गुण अर्थात् शक्ति के विकास से तत्त्व अर्थात् सत्य की प्रतीति हो, अथवा जिससे हेय, ज्ञेय एवं उपादेय तत्त्व के यथार्थ विवेक की अभिरुचि हो, वह सम्यग्दर्शन है। नय और प्रमाण से होने वाला जीव आदि तत्त्वों का यथार्थबोध सम्यगज्ञान है / सम्यग्ज्ञानपूर्वक काषायिक भाव अर्थात् राग-द्वेष और योग (मन-वचन-काय की 1. उतरा. (गुजराती भाषान्तर भावनगर) भा. 2, पत्र 229 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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