________________ पंचविसइमं अज्झयणं : पच्चीसवाँ अध्ययन जन्नइज्ज : यज्ञीय जयघोष : ब्राह्मण से यमयायाजी महामुनि 1. माहणकुलसंभूओ आसि विप्पो महायसो। जायाई जमजन्नंमि जयघोसे त्ति नामओ॥ [1] ब्राह्मणकुल में उत्पन्न महायशस्वी जयघोष नाम का ब्राह्मण था जो यमरूप यज्ञ में (अनुरक्त) यायाजी था। 2. इन्दियग्गामनिग्गाही मग्गगामी महामुणी। गामाणुगामं रीयन्ते पत्तो वाणारसि पुरि // {21 वह इन्द्रिय-समूह का निग्रह करने वाला, मार्गगामी महामुनि हो गया था। एक दिन ग्रामानुग्राम विहार करता हुया वह वाराणसी पहुँच गया। 3. वाणारसीए बहिया उज्जाणंमि मणोरमे। फासुए सेज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए। [3] उसने वाराणसी के बाहर मनोरम नामक उद्यान में प्रासुक शय्या (वसति) और संस्तारक ( –पीठ, फलक आदि आसन) लेकर निवास किया। विवेचन–ब्राह्मण से यमयायाजी-वाराणसीनिवासी जयघोष और विजयघोष दोनों सगे भाई काश्यपगोत्रीय विप्र थे / एक दिन जयघोष ने गंगा तट पर एक मेंढक को निगलते सांप को देखा, जिसे एक कुररपक्षी अपनी चोंच से पछाड़ कर खा रहा था / संसार की ऐसी दुःखदायी स्थिति देख कर जयधोष को विरक्ति हो गई / धर्म का ही प्राश्रय लेने का विचार हुआ / गंगा के सरे तट पर उत्तम मनियों को देखा, उनका धर्मोपदेश सुना और निर्ग्रन्थमनिदीक्षा ग्रहण करके वह पंचमहाव्रत (यम) रूप यज्ञ का यायाजी बना / 2 / जायाई जमजण्णंसि-यम का अर्थ यहां पंचमहावत है। यमयज्ञ का अर्थ है--पंचमहाव्रतरूप यज्ञ, उसका यायाजी (बार-बार यज्ञ करने वाला) 1. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर भावनगर), पत्र 196 2. 'यमा:--अहिंसा-सत्याऽस्तेय-ब्रह्म-निर्लोभा: पंच, त एव यज्ञो---यमयज्ञस्तस्मिन यमयज्ञे, अतिशयेन पुनः पुनः यज्ञकरणशील:–यायाजी / अर्थात-पंचमहाव्रतरूपे यज्ञे याज्ञिको -मुनिः जातः / ' ' -अभि. रा. कोष भा. 4, पृ. 1419 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org