________________ 382] [उत्तराध्ययनसूत्र परिसंवाद से श्रुत और शील का उत्कर्ष हुआ, महान् प्रयोजनभूत तत्त्वों का निर्णय हुअा। इस धर्मचर्चा से सारी सभा सन्तुष्ट हुई / * अन्तिम गाथा में जो प्रशस्ति दी गई है, वह अध्ययन के रचनाकार की दृष्टि से दी गई प्रतीत होती है। वस्तुतः समदर्शी तत्त्वद्रष्टाओं का मिलन, निष्पक्ष चिन्तन एवं परिसंवाद बहुत ही लाभप्रद होता है। वह जनचिन्तन को सही मोड़ देता है, युग के बदलते हुए परिवेष में धर्म और उसके आचार-विचार एवं नियमोपनियमों को यथार्थ दिशा प्रदान करता है, जिससे साधकों का आध्यात्मिक विकास निराबाधरूप से होता रहे। संघ एवं धार्मिक साधकवर्ग की व्यवस्था सुदृढ़ बनी रहे। 1. उत्तरा. मूलपाठ अध्याय 23, गाथा 85 से 89 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org