________________ [उत्तराध्ययनसूत्र 47. एए नरिन्दवसभा निक्खन्ता जिणसासणे / पुत्ते रज्जे ठवित्ताणं सामण्णे पज्जुवटिया / [46-47] कलिंगदेश में करकण्डु, पांचालदेश में द्विमुख, विदेहदेश में नमिराज और गान्धारदेश में नग्गति राजा हुए। __ ये चारों श्रेष्ठ राजा अपने-अपने पुत्रों को राज्य में स्थापित कर जिनशासन में प्रवजित हुए और श्रमणधर्म में भलीभांति समुद्यत हुए। विवेचन-(१)-करकण्ड-कलिंगदेश का राजा दधिवाहन और रानी पद्मावती थी। एक बार गर्भवती रानी को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हा कि–'मैं विविध वस्त्राभूषणों से विभूषित होकर पट्टहस्ती पर आसीन होकर छत्र धारण कराती हुई राजोद्यान में घूम / ' राजा ने जब यह जाना तो पद्मावती रानी के साथ स्वयं 'जयकुंजर' हाथी पर बैठ कर राजोद्यान में पहुँचे / उद्यान में पहुँचते ही वहाँ की विचित्र सुगन्ध के कारण हाथी उद्दण्ड होकर भागा। राजा ने रानी को सूचित किया कि 'वटवृक्ष आते ही उसकी शाखा पकड़ लेना, जिससे हम सुरक्षित हो जाएँगे।' वटवृक्ष आते ही राजा ने तो शाखा पकड़ ली, परन्तु रानी न पकड़ सकी। हाथी पवनवेग से एक महारण्य में स्थित सरोवर में पानी पीने को रुका, त्यों ही रानी नीचे उतर गई। अकेली रानी व्याघ्र, सिंह आदि जन्तुओं से भरे अरण्य में भयाकुल और चिन्तित हो उठी। वहीं उसने सागारी अनशन किया और अनिश्चित दिशा में चल पड़ी। रास्ते में एक तापस मिला / उसने रानी की करुणगाथा सुन कर धैर्य बंधाया, पक्के फल दिये, फिर उसे भद्रपुर तक पहुँचाया / आगे दन्तपुर का रास्ता बता दिया, जिससे आसानी से वह चम्पापुरी पहुँच सके / पद्मावती भद्रपुर होकर दन्तपुर पहुँच गई / वहाँ उसने सुगुप्तव्रता साध्वीजी के दर्शन किए। प्रवर्तिनी साध्वीजी ने पद्मावती की दुःखगाथा सुन कर उसे ग्राश्वासन दिया, संसार की वस्तुस्थिति समझाई। इसे सुन कर पद्मावती को संसार से विरक्ति हो गई। गर्भवती होने की बात उसने छिपाई, शेष बातें कह दीं। साध्वीजी ने उसे दीक्षा दे दी। किन्तु धीरेधीरे जब गर्भिणी होने की बात साध्वियों को मालम हुई तो पद्मावती साध्वी ने विनयपूर्वक सब बात कह दो / शय्यातर बाई को प्रवर्तिनी ने यह बात अवगत कर दी / उसने विवेकपूर्वक पद्मावती के प्रसव का प्रबन्ध कर दिया। एक सुन्दर बालक को उसने जन्म दिया और नवजात शिशु को श्मशान में एक सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया। कुछ देर तक वह वहीं एक अोर गुप्त रूप से खड़ी रही। एक निःसन्तान चाण्डाल आया, उसने उस शिशु को ले जाकर अपनी पत्नी को सौंप दिया। बालक के शरीर में जन्म से ही सूखी खाज (रूक्ष कण्डूया) थी, इसलिए उसका नाम 'करकण्डू' पड़ गया। युवावस्था में करकण्डू को अपने पालक पिता का श्मशान की रखवाली का परम्परागत काम मिल क बार श्मशानभूमि में गुरु-शिष्य मुनि ध्यान करने पाए। गुरु ने वहाँ जमीन में गडे हए बांस को देख कर शिष्य से कहा---'जो इस बांस के डंडे को ग्रहण करेगा, वह राजा बनेगा।' निकटवर्ती स्थान में बैठे हुए करकण्डू ने तथा एक अन्य ब्राह्मण ने मुनि के वचन सुन लिये / सुनते ही वह ब्राह्मण उस बांस को उखाड़ कर लेकर चलने लगा। करकण्डू ने देखा तो क्रुद्ध होकर ब्राह्मण के हाथ से वह बांस का दण्ड छोन लिया / उसने न्यायालय में करकण्डू के विरुद्ध अभियोग किया / परन्तु उस अभियोग में करकण्डु की जीत हुई। फैसला सुनाते समय राजा ने करकण्डू से कहा-'अगर तुम इस दण्ड के प्रभाव से राजा बनो तो एक गाँव इस व्राह्मण को दे देना। करकण्ड ने स्वीकार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org